________________
रायपसेणइय सुत्तनो सार
॥४॥
अनेक नटो, नाचनाराओ, राजानां गुणगान गानाराओ, मल्लो, मुट्ठिजुद्ध करनाराओ, हसावनारा विदूषको, कथा करनाराओ, कूद नाराओ के तरनाराओ, रास लेनाराओ के भांड लोको, शुभ अशुभ कही बतावनारा ज्योतिषिको, "लंखो-वांसडानी टोच उपर खेल करनाराओ, चित्रनां पाटियां हाथमा राखी जनमनरंजन करनाराओ, तूण वगाडनाराओ अने तुंबनी वीणा वगाडनाराओ, प बधा लोको नगरीमा सारो आश्रय मेळवता हता.
दंपतीओने क्रीडा करवाना रमणीय आरामो, मोटा मोटा उत्सवो अने मोटी मोटी उजाणीओ ऊजवी शकाय पवां सुंदर उद्यानो, 4 सरस कूवाओ, आंखने ठारे पवां तळावो, दीर्घिकाओ-लांबी लांबी मनोहर वावडीओ अने क्याराओ नगरीनी शोभामां वधारो करता हता. ___ नगरीनी रक्षा करतुं नगरीनी फरतुं उडु, उपर पहोळु नीचे सांकडं एवं खात हतुं तथा नगरी फरती उंडी अने उपर नीचे सरखी खोदेली विशाळ खाइ हती, नगरीमां कोई उपद्रवकारी न पेसी शके माटे मोटा मोटा तीक्ष्ण चक्रो, गदाओ, मुसंढीओ, सो जणाने कचरी नाखे पवी मोटी मोटी शिलाओ वगेरे शस्त्रो' दरवाजे दरवाजे टांगेला हतां, नगरीनी फरतो धनुष जेवो वांकडो कोट अर्थात् अनेककोटि एटले अनेक क्रोड संख्या. पण आ अर्थ करता 'अनेक कोटि' नो 'अनेक प्रकार' एवो अर्थ अहीं विशेष उचित लागे छे'कोटि' शब्दनो 'प्रकार' अर्थ, जैन आगमोमां सुप्रतीत छे..
७ आ अर्थ माटे मूळमां 'लंख' शब्द छे. जे लोको चोघडियां वगाडे छे तेने 'लंघा' कहेवामां आवे छे. मूळनो 'लंख' अन आ 'लका' बन्ने समान शब्दो छे एठले 'लङ्घ नो मूळ अर्थ 'चोघडियां वगाडनारो' कदाच होइ शके.
८ शहेरनी फरती खाइ होय छे तेम खाइनी फरतुं बहारना भागमा एक 'खात' पण होय छे, एमां अंगारा के चीणो भरवामां आवतो. चीणो एटले बधो लीसो होय छे के तेना उपर पग मूकतां ज माणस तळिये उतरी जाय छे. एरीते 'खात' शहेरनी रक्षानुं एक साधन हतुं. १५
९ केटलांक प्राचीन शस्त्रोनां नाम, आचार्य हेमचन्द्र आ प्रमाणे जणावे छे: "चन्द्रहास छुरी पत्रपाल दंड ईली भिदिपाल कुन्त दुघण
Jain Education telmaal
For Private & Personel Use Only
fwwwhinelibrary.org