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रायपसेण
इयं।
| लित्ता गुत्ता गुत्तदुवारा णिवायगंभीरा, अह णं केइ पुरिसे भेरिंच दंडं च गहाय कूडागारसालाए अंतो अंतो अणुप्पविसति तीसे कूडागारसालाए सव्वतो समंता घणनिचियनिरंतरणिच्छिडाई दुवारवयणाई पिहेइ, तीसे कूडागारसालाए बहुमज्झदेसभाए ठिचा तं भेरि दंडएणं महया महया सद्देणं तालेज्जा, से णूणं पएसी! से सद्दे | णं अंतोहिंतो बहिया निग्गच्छइ ? हंता णिग्गच्छइ, अत्थि णं पएसी! तीसे कूडागारसालाए केइ छिडे वा जाव | राई वा जओ णं से सद्दे अंतोहिंतो बहिया णिग्गए ? नो तिणटे समढे, एवामेव पएसी! जीवे वि अप्पडिहयगई पुढविं भिचा सिलं भिच्चा पव्वयं भिच्चा अंतोहिंतो बहिया णिगच्छइ, तं सद्दहाहि णं तुमं पएसी! अण्णो जीवो तं चेव ३। [१७३] तए णं पएसी राया केसिकुमारसमणं एवं वदासी-अस्थि णं भंते ! एस पण्णा उवमा इमेण पुण कारणेणं णो उवागच्छइ, एवं खलु भंते ! अहं अन्नया कयाइ बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए जाव [कं० १७१ पं० २]| विहराभि, तए णं ममं णगरगुत्तिया ससक्ख जाव उवणेंति, तए णं अहं(सं) पुरिसं जीवियाओ ववरोवेमि जीवि- याओ ववरोवेत्ता अयोकुंभीए पक्खिवावेमि अउमएणं पिहावेमि जाव [कं० १७१ पं० ६] पच्चइएहिं पुरिसेहिं रक्खावेमि, तए णं अहं अन्नया कयाई जेणेव सा कुंभी तेणेव उवागच्छामि तं अउकुंभि उग्गलच्छामि तं अउकुंभी किमिकुंभि पिव पासामि जो चेव णं तीसे अउकुभीए केइ छिडे इ वा जाव राई वा जताणं ते जीवा
[१७२] १ भेरी-ढक्का ! २ दण्डो वादनदण्डः।
याः कुटाका कारशालाय अपि शब्द निर्गमदृष्टान्तेन जीवनिगमःअ. यःकुम्भीनिक्षिप्तमारितचौरस्ट कृमिरूपता दृष्टान्तेन अ नात्मवादः
॥३१५॥
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