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________________ रायसेनइयं । ॥२९६॥ डिरूवं उग्गहं अणुजाणेज्जाह पडिहारिएणं पीढफलग-जाव उवनिमंतिज्जाह, एयमाणत्तियं खिप्पामेव पञ्चप्पि जाह, तए णं ते उज्जाणपालगा चित्तेणं सारहिणा एवं वृत्ता समाणा हट्ठतुङ - जाव- हियया करयल परिग्गहियं जाव एवं वयासी-तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणंति । [१५६] तए णं चित्ते सारही जेणेव सेयविया णगरी तेणेव उपागच्छइ सेयवियं नगरिं मज्झमज्झेणं अ पविसह जेणेव पएसिस्स रण्णो गिहे जेणेव बाहिरिया उवद्वाणसाला तेणेव उवागच्छइ तुरए णिगिण्हह रह ठवेइ रहाओ पञ्चोरूहइ तं महत्थं जाव गेव्हइ जेणेव पएसी राया तेणेव उवागच्छह पएसिं रायं करयल - जाव वृद्धावेत्ता तं महत्थं जाव उवणेइ । तए णं से पएसी राया चित्तस्स सारहिस्स तं महत्थं जाव पडिच्छर चित्तं सारहिं सकारेइ सम्माणेइ पडिविसज्जेइ । तए णं से चित्ते सारही परसिणा रण्णा विसज्जिए समाणे हट्ठजाव- हियए पएसिस्स रन्नो अंतियाओ पडिनिक्खमइ जेणेव चाउरघंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ चाउरघंट आसरहं दुरूहइ सेयवियं नगरिं मज्झंमज्झेणं जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ तुरए णिगिण्हह रहं ठवेइ १० रहाओ पचोरुहइ पहाए जाव उपि पासायवरगए हमाणेहिं मुइंगमत्थएहिं बत्तीसइबद्धएहिं नॉडएहिं वतरु [१५६] १ स्फुटद्भिरतिरभसास्फालनात् २ मर्दलमुखपुटैः ३ द्वात्रिंशद्विधैः द्वात्रिंशत्पात्र ४ नाटकैर्वर तरुणी५ संप्रयुक्तै रुपनृत्य ० तरुणयु-पा० ५ । Jain Education Inemanal For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600148
Book TitleRaipaseniya Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1938
Total Pages536
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_rajprashniya
File Size11 MB
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