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________________ रायपसेणइयं। ॥२४८॥ सुवन्नविहिं भाएंति, रयणविहिं पुप्फैविहिं फलेंविहिं मल्लविहिं चुण्ण विहिं बथविहिं गंधविहिं०, तत्थ अप्पेगतिया देवा आभरणविहिं भाएंति, अप्पेगतिया चउब्विहं वाइत्तं वाइंति-ततं विततं घणं [पृ० १४४ पं० ३] झुसिरं, अप्पेगइया देवा चउब्विहं गेयं गायंति, तं०-उक्खित्तायं पायत्तायं मंदायं [पृ० १४४ पं० ४] रोइतावसाणं, अप्पेगतिया देवा दुयं नविहिं उवदंसिंति अप्पेगतिया विलंबियणदृविहिं उवदंसेंति अप्पेगतिया देवा दुतविलंथियं णविहिं उवदंसेंति, एवं अप्पेगतिया अंचियं नविहिं उवदंसेंति, अप्पेगतिया देवा आरभडं भसोलं आरभेड भसोलं उप्पायनिवायपवत्तं संकुचियपंसारियं रियारियं भंतसंभंतणामं [कं०८३-८७] दिव्वं णविहिं उवसेंति, अप्पेगतिया देवा चउव्विहं अभिणयं अभिणयंति, तंजहा-दिटुंतियं पादंतियं सामंतोवणिवाइयं [कं०८८] लोगअंतोमज्झावसाणियं, अप्पेगतिया देवा बुक्कारेंति, अप्पेगतिया देवा पीणेति, अप्पेगतिया लासंति अप्पेगतिया हकारेंति, अप्पेगतिया विणंति, "तंडवेंति, अप्पेगइया वग्गंति अप्फोडेंति, अप्पेगतिया अप्फोडेंति वग्गंति, अप्पे तिवई छिदंति, अप्पेगतिया हयहेसियं करेंति, अप्पेगतिया हत्थिगुलगुलाइयं करेंति, १० विश्राणयन्ति-शेषदेवेभ्यो ददतीति भावः, एवं १२ सुवर्ण-१३ रत्न-१४ पुष्प-१५ फल-१६ मालथ-गन्ध-१७ चूर्ण-१८ आभरणविधिभाजनमपि भावनीयम् । २० उत्पातपूर्वो निपातो यस्मिन् स उत्पातनिपातस्तं, एवं निपातोत्पात २१ संकुचितप्रसारित २२ | भ्रान्तसंभ्रान्तं नाम १९ आरभटभसोलं दिव्यं नाटयविधिमुपदर्शयन्ति, अप्येकका देवा २३ बुक्काशब्दं कुर्वन्ति, २४ पीनयन्ति-पीन|मात्मानं कुर्वन्ति-स्थूला भवन्तीत्यर्थः, २५ लासयन्ति लास्यरूपं नृत्यं कुर्वन्ति, २६ ताण्डवयन्ति-ताण्डवरूपं नृत्यं कुर्वन्ति २७ आ an Educational For Private Personel Use Only
SR No.600148
Book TitleRaipaseniya Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1938
Total Pages536
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_rajprashniya
File Size11 MB
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