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________________ रायसेनइय सुत ॥१८॥ Jain Education I विनानो पम करतां भय पामे छे अने मळेली हजार मुद्रा वयक चाली जाय तो पछी शुं थाय ? एम समजी साहस करवा समर्थ थतो नथी. पोते अनेक साहसिकोने प रीते लक्षाधिपति थरला नजरे प्रत्यक्ष जुए छे छतां तेनो पूर्वग्रह छूटतो नथी, तेम आपणे पण शरीर, इंद्रिय, मन अने संकल्पोथी ज थतां सुखोमां सपडाया छीप. तेथी प सुखने छोडी वा ए सुख उपर अंकुश मुकी अंतर्मुख थई शकता नथी. पूर्वग्रहजन्य सुखो छोडतां आपणे आपणी जातने अशरण दुःखी अने कष्टमय थई गपली कल्पीप छीप. पएसी ! ज्यांसुधी आपणे आपणा पूर्वग्रहनो ए ग्रंथि मेदीने आगळ न वधीप त्यांसुधी आत्माना अनुभव माटेना आपणा सर्व प्रयासो नर्या फांफां छे. साहस कर्या बिना छूटको ज नथी. अहीं तो “माथा साटे माल छे." "महीं पड्या ते महासुख माणे” एज म्याय छे. माटे तारे हवे आज प्रयोग करवानो रह्यो अने हुं तारी जिज्ञासा अने आत्मानुभव संबंधी तालावेलीथी जाणी शकुं हुं के ए प्रयोगने अंते विजय तारो ज छे. पपसी ! ए प्रयोग तो घणा लोको करे हे पण सेमांना केटलाक तो साधनोमां ज अटकी पडे छे, केटलाक बाह्य प्रवृत्तिमां ज फलाई जाय छे, केटलाक नरी प्रतिष्ठामां ज पटकाई पडे छे, माटे तारे ए प्रयोग करतां बराबर विवेक सावधानी राखवी जरूरी छे. सांभळ, "कोई क्रियाजड थई रह्या शुष्क ज्ञानमां कोई, बाह्य क्रियामां राचता अतभेद न कांई. " "बंध मोक्ष छे कल्पना भाखे वाणी मांहि व मोहावेशमां शुष्कज्ञानी से अहि. " "वैराग्यादि सफळ तो जो सह आतमशान, तेमज आतमज्ञाननी प्राप्तितणां निदान. " "त्याग विराग न चित्तमां थाय न तेने ज्ञान, अटके त्याग विरागमां तो भूले निजभान. "ज्यां ज्यां जे जे योग्य छे तह समजवूं तेह, त्यां त्यां ते ते आचरे आत्मार्थी जन एह. " For Private & Personal Use Only प्रवेशक Lainelibrary.org
SR No.600148
Book TitleRaipaseniya Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1938
Total Pages536
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_rajprashniya
File Size11 MB
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