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________________ रायपसेणइय सुत्तं प्रवेशक ॥१७॥ हा, ए खरं के, ते जे प्रयोगो पेला चोरना शरीर उपर कर्या तेज प्रयोगो तारा पोताना शरीर उपर अजमाव्या होत तो कदाच तने आत्मानी प्रतीति थात खरी. हजु काई वखत वीत्यो नथी. तुंएज प्रयोगो तारी पोतानी जात उपर-तारी इंद्रियो मन, शरीर अने संकल्पो उपर अजमावीश तो तने 'आत्मा छे' एवी खात्री थया विना नहि रहे. पएसी! आत्मानी पूर्णतया प्रतीति थाय ए माटे हुँ पण मारी जात उपर घणा आकरा प्रयोगो अजमावी रह्यो छु, तेथी मने आत्मानी प्रतीति तो छे, पण हजु तेनी पूर्णतया प्रतीति-आत्मानो पूर्ण साक्षात्कार-वीजा घणा आकरा प्रयोगोनी राह जुए छे. ए बधा आकरामां आकरा प्रयोगोनी कसोटीमाथी अणीशुद्ध रीते पसार थई शकीश तो ज हुँ पूर्ण आत्माने अनुभवी शकीश. पपसी! आत्मानो अनुभव मेळववा अने तेनो सर्व प्रकारे साक्षात्कार पामवा तारे अंतर्मुख थर्बु पडशे. रूप रस गंध स्पर्श अने शब्दजन्य सुखोने मेळववा मन अने इंद्रियो जे दोडादोडी करी रह्यां छे तेमने तारे संयममा राखवां पडशे; आ स्थूळ शरीर सुख पामेते करमाई न जाय, ते माटे तुं जे हजारो प्रयत्नो सेवी रह्यो छे अने ए प्रयत्नो माटे हजारो मानवोनी शक्तिनो उपयोग करी रह्यो छे ते बधुं तारे जतुं कर पडशे. आत्मसुख आत्माद्वारा ज वेदी शकाय छे. आत्मा पोताना सुखथी संतुष्ट छे. "आत्मन्येव आत्मना तुष्टः" ए सिद्धांतने तारे जीवनव्यवहारमा सावधानीथी आचरवो जोईशे. खरं कहुं तो आपणे बधा शरीर, इंद्रिय, मन अने संकल्पोथी ऊपजतां सुखमां संतोष मेळवी अने ते ज सुखने परमसुख मानी तेनी पाछळ पड्या छीए अने ते मिथ्या प्रयासने कीधे ज आत्मसुखनो स्वाद चाखी शकता नथी. जेम एक व्यापारी व्यापार अर्थ देशांतरमां जाय. ते एवी मोटी आशा राखे के हुं लक्षाधिपति थाउं. रस्तामा जतां तेने एक निधान मळी जाय अने तेमांथी ते मात्र हजार मुद्रा पामी पाछो वळे अने ते द्वारा ज संतुष्ट थई जेमतेम जीवननिर्वाह करे. तेने बीजो व्यापारी समजण आपे के, भाई ! आ हजार मुद्राने व्यापारमा रोकी तेमांथी दसगुणी के शतगुणी बीजी मुद्रा कमा, पण ते साहस Jain Education intern al For Private & Personel Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600148
Book TitleRaipaseniya Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1938
Total Pages536
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_rajprashniya
File Size11 MB
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