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श्रीस्थानाङ्ग
सूत्र
दीपिका वृत्तिः ।
१४००॥
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अनन्तरं पुरुषभेदा उक्ताः, अधुना तद्व्यापारविशेषं तद्वेदसम्पाद्यमभिधित्सुः सूत्रसप्तकमाह - 'चरवि संवासे' इत्यादिचउब्विहे संवासे पं० त० दिवे आसुरे रक्खसे माणुसे १, चव्वि संवासे पं० त० देवे णाम पगे देवीए सद्धि संवास गच्छह, देवे णाम एगे असुरीप सद्धि संवास गच्छइ. असुरे णाम एगे देवीए सद्धिसंघास गच्छर, असुरे नाम पगे असुरीए सद्धि संवास गच्छइ २, चउच्चि संवासे पं० त०- देवे णाम पगे देवीप सद्धि संवास गच्छर, देवे णाम पगे रक्खसीप सद्धि संवास गच्छ, रक्खसे णाम एगे देवीए सद्धि संवास गच्छछ. रक्खसे नाम एगे रक्खसीए सद्धि संवास गच्छद्द, ३, चउबिहे संवासे पं० त०- देवे णाम एगे देवीप सद्धि संवास गच्छ, देवे णाम एगे मणुस्सीए सद्धि संवास गच्छइ मणुस्से नाम एगे देवीप सद्धि संवास गच्छ मस्से नाम पगे मणुस्सीप सद्धि संवास गच्छर ४, चउब्विहे संवासे पं० त० - असुरे णाम पगे असुरीप सद्धि संवास गच्छर, असुरे णाम एगे रक्खसीप सद्धि संवास गच्छद्द, ४, ५, चउच्चिद्दे संवासे पं० त०-- असुरे णाम पगे असुरी सद्धि संवास गच्छर, असुरे णाम एगे मणुस्सीप सद्धि संवास गच्छइ ४, ६, चउब्वि संवासे पं० त० रक्खसे णाम पगे रक्खसीए सद्धि संवास गच्छर, रक्खसे णाम पगे मणुस्सीए सद्धि संवास गच्छइ ४, ७, ( सू० ३५३) चउव्विहे अवर्द्धसे पं० त० - आसुरे आभिओगे संमोहे देवकिब्बिसे चि ठाणेहिं जीवा आसुरत्ताए कम्मं पगति, तं०- कोइसीलणयाए पाहुडसीलणयाए संसत्ततवोकम्मेण निमित्ताजीवणयार, चउद्दि ठाणेहिं जीवा अभिओगत्ताए कम्मं पगरेंति, तं०-अत्तुक्कोसेण परपरिवारण भूकम्मेण कोउयकरणेण, चउहिं ठाणे जीवा सम्मोहत्ताए कम्म पगरे ति तं० - उम्मग्गदेसणार मग्गंतरापण कामास सप्पयोगेण भिजाणियाणकर
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सू० ३५३-३५४ ।
॥४८८॥
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