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________________ सू०१४३-१४४। श्रोस्थानाङ्गसूत्र द.पिका वृत्तिः । ॥१६॥ 00000000000000000000000000000000000000000000000000000000 वासेसु तीयाए उस्सप्पिणीप सुसमसुसमाए समाए मणुया तिण्णि गाउयाइ उड्ढ उच्चत्तेण, तिण्णि पलिओवमाई परमाउय पालयित्था १, एवं इमीसे ओसप्पिणीए २, आगमेस्साए उस्सप्पिपणीए ३, जम्बूद्दीवे दीवे देवकुरुउत्तरकुरासु मणुया तिण्णि गाउयाइ उइढ उच्चत्तेणं ५०, तिणि पलिओवमाइ परमाउय पालयति, ४, पब जाब पुक्खरवरदीवइढपच्चत्थिमद्धे २० ! जवूद्दीवे दीवे भरहेरवपसु वासेसु एगमेगाए ओसप्पिणीउस्सप्पिणीए तओ वंसाओ उपजिसु वा उप्पज्जति वा उप्पज्जिस्संति वा तंजहा-अरहंतवंसे चक्कवहिवंसे दसारवसे २१, एवं जाव पुक्खरवरदीवडूढपच्चत्थिमद्धे २५ । जंबूद्दीवे दीवे भरहेरवपसु वासेसु एगमेगाए ओसप्पिणीउस्सप्पिणीए तओ उत्तमपुरिसा उप्पजिसु वा उप्पज्जंति वा उप्पज्जिस्संति वा त-अरहंता चकवट्टी बलदेववासुदेवा २६, एवं जाव पुक्खरवरदीवड्ढपच्चत्थिमद्धे ३०, तओ अहाउय पालयति त-अरहंता चक्कवट्टी बलदेववासुदेवा ३१, तओ तओ मज्झिमाउय पालय ति, त-अरहता चक्कवट्टी बलदेववासुदेवा ३२ (सू० १४३) । 'जम्बूद्दीवे' इत्यादि सुवोध, किन्तु 'पन्नत्ते'त्ति अवसर्पिणीकालस्य वर्तमानत्वेनातीतोत्सर्पिणीवत् होत्यत्ति न व्यपदेशः कार्यः, अपि तु पन्नत्तेत्ति कार्य इत्यर्थः, 'जम्बूद्दीवेत्यादिना वासुदेवे'त्येतदन्तेन ग्रन्थेन कालधर्मानेवाहसुगमश्चाय, किन्तु 'अहाउयं पालयति'त्ति निरुपक्रमायुष्कत्वात् , मध्यमायुः पालयन्ति वृद्धत्वाभावात् । आयुष्काधिकारादिदं सूत्रद्वयमाह बायरतेउकाइयाण उक्कोसेण तिण्णि राईदियाई ठिई पन्नत्ता । बादरवाउकाइयाण उक्कोसेण तिणि वाससहस्साई ठिई ५० (सू० १४४) । अह भंते ! सालीण वीहीण गोधूमाण जवाणजवजवाणं एतेसि ण धन्नाण कोट्टाउत्ताण पल्लाउत्ताण मंचाउत्ताणं मालाउत्ताणं ओल्लित्ताणं लित्ताणं लंछियाण मुद्दियाणं पिहियाणं केवइय For Private & Personal use only ॥१६॥ Jan Education www.iainelibrary.org
SR No.600142
Book TitleSthanang Sutra Dipika Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalharsh Gani, Mitranandvijay
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1974
Total Pages454
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_sthanang
File Size23 MB
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