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________________ चत्तारि पंच जोयण सयाई गंधो उ मणुयलोयस्स। उर्दू बच्चइ जेणे, न हु देवा तेण आविति ॥ Marathi पत्रांका | जो य पओगं जुजइ, हिंसत्थं जो य अन्नभावेण । | अमणोय जो पउंजइ, इत्थ विसेसो महं वुत्तो।। जा जयमाणस्स भवे, विराहगा सुत्तविहिसमग्गस्स । सा होइ निज्जरफला, अज्झत्थविसोहिजुत्तस्स ॥ जं अन्नाणी कम्म, खवेइ बहुयाहिं वासकोडीहिं । तं नाणी तिहि गुत्तो, खवेइ ऊसासमित्तेणं ॥ १०२ जिण पंचसु कल्लाणएसु चैव महरिसितवाणुभावाओ। जम्मंतरने हेण य, आगच्छंति सुरा इयं ॥ FAS जे जत्तिया य हेऊ, भवस्स ते चेव तत्तिया मोक्खे। गणणाईया लोगा, दोहवि पुण्णा भवे तुल्ला ॥ जइया होही पुच्छा, जिणंदपासंमि उत्तरं तइया । इक्कास निगोयस्स, अणंतभागो य सिद्धिगओ जो य पमत्तो पुरिसो, तस्स य जोग पदुच्च जे सत्ता। वाविज्जते नियमा, तेसिं सो हिंसओ होइ॥ जे वि न वाविज्जती, नियमा तेसि पि हिंसओ होई। | सावज्जो य पओगेण, सव्वभावेण सो जम्हा ॥ तस्स असंचयओ सं-चयओ (य) जाई सत्ताई। १०५ जोगं पप्प विणस्संति, नथि हिंसाफलं तस्स ॥ तो बहुगुणनासाणं, सम्मत्तचरित्तगुणविणासाणं । १०५ | न हु वसमागंतब्ब, रागद्दोसाण पावाणं ॥ Jain Education ww.jainelibrary.org For Private&Personal use Only tematica
SR No.600140
Book TitleSuyagadanga Sutram Part-2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar Gani
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1962
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_sutrakritang
File Size15 MB
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