SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 288
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्रम्. संग्रहणी॥१३६॥ 646464-646466262562 अड सग छप्पण चउ तिन्नि, दोन्नि एको अ सिज्झमाणेसु । बत्तीसाइसु समया, निरंतरं अंतरं उवरिं ॥ २१२ ॥ बत्तीसा अडयाला, सट्ठी वावत्तरी अ अवहीओ। चुलसी छन्नउई दुरहिअसयमट्टत्तरसयं च ॥ २१३ ॥ पणयाल लक्खजोअणविक्खंभा सिद्धसिल फलिहविमला। तदुवरिगजोअणंते, लोगंतो तत्थ सिद्धठिई ॥२१४ ॥ मणुअदारं समत्तं, तिरिअदारं भण्णइवापीससगतिदसवाससहसगणितिदिणबेंदिआईसुं । वारसवासुणपणदिण, छमासतिपलिअट्टिई जेहा ॥ २१५॥ सहा य सुद्धवालुअ, मणोसिला सकरा य खरपुढवी । इगवारचोइससोलढारवावीससमसहसा ॥ २१६ ॥ गब्भभुअजलचरोभय, गम्भोरगपुवकोडि उकोसा । गम्भचउप्पयपक्खिसु, तिपलिअ पलिआअसंखसो ॥२१७॥ पुवस्स उ परिमाणं, सरि खलु वास कोडिलक्खाओ । छप्पन्नं च सहस्सा, बोद्धचा वासकोडीणं ॥ २१८ ॥ संमुच्छपणिंदिअथलखहयरुरगभुअगजिट्ठठिइ कमसो। वाससहस्सा चुलसी, विसत्तरी तिपण बायाला ॥२१९॥ एसा पुढवाईणं, भवट्टिई संपयं तु कायठिई। चउ एगिदिसु नेआ, ओसप्पिणिओ असंखेजा ॥२२०॥ ताउ वर्णमि अणंता, संखेजा वाससहस विगलेसु । पचिंदितिरिनरेसुं, सत्तभवा उ उक्कोसा ॥ २२१ ॥ सवेसिपि जहन्ना, अंतमुहुत्तं भवे अकाए अ। जोअणसहस्समहिलं एगिदिअदेहमुक्कोसं ॥ २२२ ॥ बितिचउरिंदिसरीरं, बारसजोअणतिकोसचउकोसं । जोअणसहस पणिदिअ, ओहे वोच्छं विसेसं तु ॥ २२३॥ ॥१३६॥ Jain Education For Private & Personal Use Only
SR No.600134
Book TitleSangrahani Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1915
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy