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________________ 4--XACANCCCCCX अंगुलअसंखभागो, सुहुमनिगोओ असंखगुण वाऊ । तो अगणि तओ आऊ, तत्तो सुहुमा भवे पुढवी ॥२२४॥ तो वायरवाउगणी, आउ पुढवी निगोअ अणुकमसो । पत्तेअवणसरीरं, अहिअं जोअणसहस्सं तु ॥ २२५ ॥ उस्सेहंगुलजोअणसहस्समाणे जलासए ने। तं वल्लिपउमपमुहं, अओ परं पुढविरूवं तु ॥ २२६ ॥ बारसजोअण संगो, तिकोस गुम्मी अ जोअणं भमरो। मुच्छिमचउपयभुअगुरग, गाउअधणुजोअणपुहत्तं ॥२२७॥ गभचउप्पय छग्गाउआई भुअगाउ गाउअपुहत्तं । जोअणसहस्समुरगा, मच्छा उभएवि असहस्सं ॥ २२८॥ पक्खिदुगधणुपुहत्तं, सवाणंगुलअसंखभाग लहू । विरहो विगलासन्नीण जम्ममरणेसु अंतमुहू ॥ २२९ ॥ गब्भे मुहुत्त बारस, गुरुओ लहु समयसंख सुरतुल्ला । अणुसमयमसंखेजा, एगिदिअ हुंति अ चवंति ॥ २३०॥ वणकाइओ अगंता, एकेकाओवि जं निगोआओ। निचमसंखो भागो, अणंतजीवो चयइ एइ ॥ २३१ ॥ गोला य असंखिजा, अस्संखनिगोअओ हवइ गोलो । एक्ककम्मि निगोए, अणंतजीवा मुणेयवा ॥ २३२॥ अस्थि अणंता जीवा, जेहि न पत्तो तसाइपरिणामो। उप्पजति चयंति य, पुणोवि तत्थेव तत्थेव ॥ २३३॥ सच्चोऽवि किसलओ खलु, उग्गममाणो अणंतओ भणिओ। सो चेव विवहृतो, होइ परित्तो अणंतो वा ॥२३४ ॥ जया मोहोदओ तिबो, अन्नाणं सुमहब्भयं । पेलवं वेअणीयं तु, तया एगेंदिअत्तणं ॥ २३५ ॥ तिरिएसु जति संखाउ, तिरिनरा जा दुकप्पदेवा उ । पजत्तसंखगन्भयबादरभूदगपरित्तेसुं ॥ २३६ ॥ Jain Education anal For Privale & Personal use only Howw.jainelibrary.org
SR No.600134
Book TitleSangrahani Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1915
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size13 MB
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