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सेस तिआसीइ लक्खा, तिसयसिआला नवइ सहसा ॥ १७८ ॥
उक्तार्था, नवरमुभये चतुरशीतिर्लक्षाः ८४००००० ॥ अथोक्तकरणस्य प्रतिपृथिवि आवलिकाप्रविष्टनरकावा| ससङ्ख्याववोधाय भावना यत्रकेण दर्श्यते । तस्य स्थापना, तथा चोक्तम्- “तिन्नि सय अउणनआ, दो तेणउआ य हुंति पढमाए । दोसय पंचासीआ, पंचोत्तर दोन्नि वीआए || १ || सत्ताणअं च सयं, तेत्तीससयं सयं च पणवीसं । सत्तत्तरि अउणत्तरि, सत्तत्तीसा य गुणतीसा ॥ २ ॥ तेरस मुहभूमीओ' इति, तथा-सत्तट्ठी पंच सया, पणनवइ सहस्स लक्ख गुणतीसं । रयणाए सेढिगया, चोआलसया उ तेत्तीसा ॥ १ ॥ सत्ताणउइ सहस्सा, चउवीसं लक्ख तिसय पंचहिआ। बीआए सेढिगया, छवीस सया उ पणनउआ || २ || पंचसया पन्नरसा, अडनउइ सहस्स लक्ख चोद्दस य । तइआए सेढिगया, पणसीता चोइस सया उ ॥ ३ ॥ तेणउआ दुन्नि सया, नवनउइ सहस्स नव य लक्खा य । पंकाए सेढिगया, सत्त सया होंति सत्तहिआ ॥ ४ ॥ सत्तसया पणतीसा, नवनउइ सहस्स दो य लक्खा य। धूमाए सेढिगया, पन्नट्टी दो सया हुंति ॥ ५ ॥ नवनउई अ सहस्सा, नव चेव सया हवंति बत्तीसा | पुढ वीए छठ्ठीए, सेढिगया हुंति तेचट्ठी ॥ ६ ॥ तमस्तमःप्रभायां तु दिक्ष्वेव एकैकस्य भावात्पञ्चैवावलिकाप्रविष्टा नरकावासाः। सर्वेऽपि चैतेऽन्तर्वृत्ता वहिश्चतुरस्राः । तथाच गुरवः - " तेणं नरगावासा, अंतो वट्टा वहिं तु चउरंसा । हिट्ठा
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