SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 180
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संग्रहणी ॥ ८२ ॥ वीओ पुण रोरुअत्ति नायचो । तो उणत्थ तइओ, चउत्थओ होइ उभंतो ॥ १ ॥ संभंतमसंभंतो, विभंतो चेव सत्तमो निरओ । अट्टमओ तत्तो पुण, नवमो सीउत्ति नायवो ॥ २ ॥ वक्तमवतो, विकंतो चेव रोरुओ निरओ। पढमाए पुढवीए, तेरस निरइंदया एए ॥ ३॥ यणिए थणए अ तहा, मणए वणए अ होइ नायच्चो । घट्टे तह संघट्टे, जिज्झे अवजिज्झए चैव ॥ ४ ॥ लोले लोलावत्ते, तहेव घणलोलुए अ बोद्धवे । वीआए पुढवीए, इक्कारस || इंदया एए ॥ ५ ॥ तत्तो तविओ तवणो, तावण्णो पंचमो निदाघो अ । छट्ठो पुण पज्जलिओ, उजलिओ सत्तमो निरओ ॥ ६ ॥ संजलिओ अट्टमओ, संपज्जलिओ अ नवमओ भणिओ । तइआए पुढवीए, एए नव होंति नरइंदा ॥ ७ ॥ आरे तारे मारे, बच्चे तमए अ होइ नायवे । खाडखडे अ खडखडे, इंदयनिरया चउत्थीए ॥ ८ ॥ खाए तमए अ तहा, झसे य अंधे अ तहय तिमिसे अ । एए पंचमपुढवीऍ, पंच निरइंदया होंति ॥ ९ ॥ हिम बद्दल | ललके, तिन्नि उ निरइंदया उ छट्ठीए । एको अ सत्तमीए, बोद्धवो अप्परट्ठाणो ॥ १० ॥ ॥ १७३ ॥ 33 अथैतेभ्यो नरकेन्द्रकेभ्यो यावत्य आवलिका निर्गतास्तासु प्रत्येकं यावन्तो नरकावासास्तदेतद्गाथाद्वयेनाहतेहिंतो दिसिविदिसि, विणिग्गया अह नरयआवलिआ । पढमे परे दिसि इगुणवन्न विदिसासु अडयाला ॥ ९७४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only वृत्तिः. ॥ ८२ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.600134
Book TitleSangrahani Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1915
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy