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________________ मदिणं तेण विसेसेण चिंतणिज्जमिणं । पच्चक्खमणत्थेणं ता किं एआइ अत्थेणं? ॥ ५९॥ इअ चिंतित्ता सत्त-1% २७गाथाश्राद्धप्र यां सामातिसूत्रम् मरत्तीइ खणित्तु गुत्तखत्तं सो। कोडीसरस्स कस्सवि गिहं पविट्ठो निअगिहं व ॥६०॥ तहिं पिच्छइ दुम्मइणा पिउणा कुद्धेण किविणगणवाणा । ताडिज्जंतं कागणिकज्जे पुत्तंपि सत्तुं व ॥ ६१॥ तत्तो विचित्तचित्तो यिके धन मित्रज्ञातं ॥१५॥ चिंतइ नूणं इमस्स किविणस्स । सवस्सं गिहिस्सं जइ ता हिअयंपि फुट्टिहिइ ॥ ६२॥ इअ झाइअ तग्गि-1 गा. हओ नीहरिओ झत्ति असुइगिहउच्च । सो पविसइ पुर्विपिव सुवण्णकारस्स वरभवणं ॥ ६३ ॥ जा पिच्छइ ४४-७२ निच्छारयछारयधूलीण पुंजए बहुए । उक्करडपुंजए इव निवाइ गेहाहिं गहिआणं ॥६४॥ एगस्थ य गिहनाहं तं धूलिं धमिअ धमिअ अमिअतरं । कणगरयं अणुमित्तं कहवि गहंतं स पेहेहे ॥६५॥ रंकेहिंपिक घरमाणुसेहिं पत्थिजमाणयं च तयं । द8 किमिह गहिस्सं? इअ चिंतिअ निग्गओ स तओ॥६६॥ तो सो निवमहिआए महिड्डिआए इगाइ गणिआए । गच्छइ गिहं सुगूढं अमावसाए ससिव नहं ।। ६७॥ तं पिच्छइ अइपिच्छिलगकालंतकुटेण दुट्ठचित्तेणं । जच्चंधवुड्डएण य रममाणिं सुरवरेणंव ॥ ६८॥ धिद्धी धणलवगिद्धीअंधाइ इमाइ कुच्छSणिज्जाए । इअ चिंतिअ निग्गंतुं गिहं गओ खत्तिअवरस्स ॥ ६९॥ कुद्धेण तेण कणमूडयं च अइचंडदंडघा एहिं । भज्ज हणिज्जमाणिं लहुगथपाणं व दहणं ॥७॥ निकिट्ठदुनिट्टरपहार भीउन निग्गओ स तओ। उ- ॥१५३॥ |ज्झिअ सबे रन्नो पविसइ पासायमुल्लसिओ॥ ७१ ॥ जुगलं ॥ जा तस्स अग्गमाहिती सा असई कुब्बडेण संघडिया । रमिऊण चिरं पच्छा आगच्छइ जाव ताव निवो ॥ ७२ ॥ विवसा गयनिहो निहोसो पुच्छए कहिं ।। Jain Educat i onal For Private & Personel Use Only w ww.jainelibrary.org
SR No.600129
Book TitleShraddh Pratikraman Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1919
Total Pages474
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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