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________________ Jain Educat | वि पुण अहह धुतत्तं ॥ ४४ ॥ किंकिचजडो राया तो घोसावेइ पडुपडहपुत्रं । जो पयडइ चोरमिमं कोडिं कण| यस्स से देमि ॥ ४५ ॥ चुलसीइसु चउहट्टयप हेसु पडहोवि वज्रमाणो सो । धुत्ताए एगाए गणिआइ विआरिडं छविओ ॥ ४६ ॥ तो सा गंतुं नरवइपासे भासेइ सत्तदिणमज्झे । गूढं पुररोगमिमं दस्सुमवस्सं हि पर्याडिस्सं ॥ ४७ ॥ रन्ना दिन्नमुनिप्पमएण इमीइ बीडयं ताहे । को वा न माणणिजो विसमं कज्जं पवतो ? ॥ ४८ ॥ तो सा चिंतइ नूणं अंजणसिद्धो व विज्जसिद्धो वा । सो तक्करो न केणवि जंतो इंतो व दीसइ जं ॥ ४९ ॥ ता तद्धरणनिमित्तं वित्तं सर्वपि निअगिहस्संतो । खिविडं दारं पिहिउं गाढं चिट्ठेइ तच्चित्ता ॥ ५० ॥ रत्तिं तु निअगिहंतरगया महाजोगणिव गयनिद्दा । तं चिअ चोरं झायइ तत्तंव परं अनन्नमणा ॥ ५१ ॥ चोरो धरिज़माणो मार नूर्णति तस्स धरणट्ठा | वाहव तिघ्वसुणहे सुहडे ठावेइ सा पासे ॥ ५२ ॥ तेणोऽवि तीइ सारं मुसिउमदिस्सो पुणो पुणो इंतो । सुहव तग्गितो तो सकइ पविसि दिवसे || ५३ ॥ तत्तो सो तहि रत्ति खत्तं खणिउं हवेइ जा सज्जो । जणणी इव हिअजणणीइ वारिओ ताव छीआए ॥ ५४ ॥ विविहेहिं असउणेहिं विहिअनि सेहस्स तस्स छविसा । एवं गया न सक्कं तीइ गिहं तेण पुण मुसिउं ॥ ५५ ॥ तो सो चिंतइ चित्ते धुत्ता एसा धुवं महं धरिही । विणिवारंति पुणो पुण कह अन्नह दुन्निमित्ताई ? ॥ ५६ ॥ दुनिमित्तत्वारिअं पुण नेमि - सिअवारिअं व नहु काउं । उचिअविकणं जम्हा ताणिवि नरकम्मवसगाणि ॥ ५७ ॥ जओ - " गयणमि गहा |सयणंमि सुविणयासउणया वणग्गेसु । तह वाहरंति पुरिसं जह दिट्ठं पुष्वकम्मेहिं ॥ ५८ ॥" अज्ज पुण सत्त national For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600129
Book TitleShraddh Pratikraman Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1919
Total Pages474
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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