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श्राद्धप्रति०सूत्रम्
२७गाथायां सामायिके धनमित्रज्ञातं गा.१-१६
॥१५॥
पयावपईवो पयं पयंगस्स देइ सत्तृणं । चित्तं तु तप्पिअंसुअसलिलहिं पजलइ अहि ॥३॥ मयणपहापमुहाओ इंदस्स व तस्स अग्गमहिसीओ। अट्ठ पसिद्धा एवं पंच सया आसि दइआओ ॥४॥ विविहे हिं उवाएहिं जाओ तणओ न तस्स इक्कोवि । तो मन्नइ रज्जसिरिं सो विहलं उच्छुलडिं व॥५॥ सिट्टी विसिट्टतणओ धणओ अवरोव नामओ धणओ। वसइ तहिं जस्स सयं कोडीओ कंचणस्सेव ॥६॥ जिणधम्मभाविएणं न केवलं धम्मओ धणाओवि । नेगमअडहिअसहसो जेण कओ अप्पणो सरिसो ॥७॥ तस्स धणस्सिरिनामा गिहिणी गिहिणीइनिउणमइविहवा । दुविहाइ धणसिरीए सो सोहइ अणुवमत्तेण ॥ ८॥ तप्पुत्तो धणमित्तो अविणयचित्तो अ दुण्णयपसत्तो । सुविसिट्टसिटिकुलदिहिदोसपडिसेहणत्थं वा ॥९॥ बालत्तणओवि इमो पइदियहं पिउगिहं परिमुसंतो। चोरव घोरकम्मो दवं सबंपि विफडेइ ॥१०॥ अणयाओ जणयाईहिं बहुपडिसेहिओ हिअत्थीहिं । सो अ विवरीअसिक्खिअहयत्व अहिअं पयट्टेइ ॥ ११॥ वाणिज्जाइकलाओ सुसिक्खिआओवि तेण नहु कलिआ। चोरिक्काइकलाओ असिक्खिआओवि अक्खलिअं॥१२॥ जुषणमणुपत्तो पुण जाओ बसणेसु सत्तसु पसत्तो। कढिओ खलु निंबरसो अइकडुओ चेव जाएइ ॥१३॥ खत्ताई देइ नरयद्दाराणि व मिहवाईण गेहेसु । गिण्हेइ तेसि सवं दवं पावंव पञ्चक्खं ॥१४॥ जूअं अणत्यभूअं अइप्पभूअं च नरयगइदूअं। खिवा मिल्हियलज्जो सोऽणजो दुभवहइसज्जो ॥१५॥ बेसावसणपसत्तो मजं मंसंपि रक्खसो इव सो। भक्खेइ किं अभक्खं पणंगणासंगयाणं वा ? ॥१६॥ सो मन्नइ अत्ताणं तिअसवरं चोरि
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॥१५॥
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