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________________ "बीहिअं ममाविहु संकि अमवि नेव दइवस्स ॥१६॥ वसुदत्तस्सवि सत्तुस्स अत्तणो धुत्तधिट्टयं धणियं । पिच्छह अच्छेरकरिं जं मह पुरओवि इअ कुणए ॥१७॥ दोहेसु मित्तदोहो ठवणीमोसो असेसमोसेलु । कूडेसु सक्खिकूडं कवडेसुं विस्ससिअकवडं ॥१८॥ एआणि महापावाणि पाषचरिएहिं दोहिं विहिआई। तहविहु महवि असंकिअचित्ता धिट्टत्तओ दुट्टा ॥ १९॥ ता दुण्हं दुचरिअं उच्चरित्रं नरवई असेसंपि । नामाई सच्चपच्चयमवि दंसिअ भणइ कारणिए ॥ २०॥ भो ! भो! भणेह तुम्भे दुण्हं कयदुन्नयाण को दंडो?। अभणिंसुवि कारणिआ जं देवो आणवेइत्ति ॥२१॥ ताहे नरनाहेणं कोहसणाहेण कूडसक्खिस्स । हयगुणलीहा जीहा छिन्ना पंखा व पंखिस्स ॥ २२॥ इअरोवि छिन्नहत्थो करिजमाणोवि सोमदेवेणं । मोआविओ समित्तुति अंतरं तेसि दुण्हमहो ॥२३॥ तत्तो पुहवीपहुणा अणायकारित्ति हरिअ सवस्सं । निवासिओसदेसागिहाओसुणयन्व कीडखओ ॥२४॥ धिद्धी यबुद्धीणं पाविट्ठाणं निकिट्ठदुहाणं । अइधिहाणं जाणं ठाणं नहु इत्थ न परत्था॥२५॥धिद्धी गिद्धा लुद्धा मुद्धा अवि| आरिऊण चिटुंता । कह्र वर्मति सहसा सवसमिद्धीओ पुवावि ॥२६॥ पञ्चक्खो उप्पाओ महाअणत्थो महाभयं |पयडं।विसमं विसं हुयासो पासोसप्पो हु परअत्थो॥२७॥ तत्तोतम्भवपावं दुस्सहदावं व अणुहवंतोसो। संपत्तो पुत्ताइअसहिओ देसंतरं दूरं ॥ २८ ॥ कत्थवि गामे पुविं संगयवणिएण करुणहिअएण । आवासिओवि सगिहे कहेइ विविहं हिअयदुक्खं ॥२९॥ यतः-"दहइ सुअणविओगो दहइ अणाहत्तणं परविएसो।दहइ अ अब्भक्खाणं दहइ अकजं कयं पच्छा ॥३०॥" चिंतेइ तओ वणिओ एस सपावेण विणिहओ तहवि । कमवि करेमि/8 Jain Education na For Private & Personel Use Only (CN.jainelibrary.org
SR No.600129
Book TitleShraddh Pratikraman Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1919
Total Pages474
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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