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तो विम्हि उच्च पुच्छइ निवई वसुसिहिमेस किं कहई । सोवि धसकिअहिअओ धिट्टत्तं धरिअ बाहरई ॥२॥ श्राद्धप्र-तावान्ह ३०
१४गाथातिसूत्रम्
अधणनासाओ गहिलीभूओ झंखइ नरेस ! एस धुवं । सोमोवि भणइ झंग्वसि तुमेव बहुलोहगहगहिओ ॥३॥ यां अदत्ते 1 कलहंति दोवि जाहे ताहे बसुहाहियो वसुं पुच्छे । पत्ताणिमाणि कत्तो ? कमागयाइंति सभणेइ ॥४॥ इत्यत्थि वसुदत्त
कोवि सक्वी नरवइभणिए भणेइ वसुसिट्ठी । बाति तओ गाढं गूढं कुविओ निवो वयए ॥५॥गोत्ते पमाण- कथा भूअंगोत्ते सिहरंव सविखणं ताहे। आणेहि लहुं सोविहु तस्साणयणाय निस्सरिओ॥३॥ पावुत्ति कुविणविहिणा ८७-१२५
पाडिअदसणं बहरिअसवस्सं । अइजरजजरदेहं गलिअमुहं पलिअभूरहं॥७॥ तो जुन्नसिट्टिमेगं भट्टधणं सो.. साभणेइ एगते । तुह एगरयणमुल्लं दाहिस्सं देसु मह सक्खि ॥ ८ ।। युग्मम् ॥धणलवलुद्धो मुद्रो तहत्ति तं झत्ति
सोवि पडिवजे । वजं पडेउ सज्ज हयाइ आसापिसाइए॥९॥ यतः-"यौवनं जरया ग्रस्तं, शरीरं व्याधिपीडितम् । मृत्युराकाङ्क्षति प्राणांस्तृष्णका निरुपद्रवा ॥१०॥" गहगहिओ वसुसहिओ स लोहखुहिओ विचाररहिओ अ । धिट्ठहिओ निवपुरओ गओ तओ अभिहिओ रन्ना ॥११॥ अइथविर ! अहो वेविरविगलिअसवंगपलिअमाअलिअं। सचं चेव पवुच्चसु वओवि विस्संभणिज्जं ते ॥१२॥ तो झत्ति सच्चवाइव रायपाएवि छिप्पिअदुरप्पा।। कप्पिअगिराहिं सक्खि भरेइ अप्पंव पावेहिं ॥ १३॥ अह महिनाहो हिअए दुस्सहकोहेण विहुरिओ अहि। जंपइ भो ! भो ! पिच्छह एसि दुण्हंपि दुहृत्तं॥१४॥ वुड्डस्स पावदसस्स ढड्डसंधिट्ठियावि कावि अहो । अह नय-18 | रघट्टया अइनिकिट्टपाविट्ठयावि अहो ॥ १५॥ नाविक्खिअं सभाए न लज्जिअं अप्पणोवि पलिआणं । नय
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