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पभणह आणेह लहुं बहुंपि मुंह मह गेहे ॥ ५८ ॥ न विणस्सह किंपि इहं गेहे देहं व रक्खिमो एअं । तुम्ह वसं इह सवं गिहिस्सह जेण भे कज्जं ॥५९॥ किं इत्थ पुच्छणिज्जं विआरणिज्जं विलंबणिज्जं वा । तरह तरह आणह ही ही धुत्तस्स उत्तीओ ॥ ६० ॥ सावि अ पाविअ भवणं निअयं संकेइ ऊण वणिअं च । चउ वरदासीण सिरे | दाउ चउपेडिआ ताओ ॥ ६१॥ रयणीइ जाइ दिअगिहमह सो उट्ठे हहतुहमणो । जा मज्झे मुक्कावह ता सो वणिओ समायाओ ।। ६२ ।। मग्गेइ रयणमंठिं पुष्टिं ठविअं तओ दिओ झाइ । जइ संपइ नप्पिस्सं ता नृणं | कलकलो होही ॥ ६३ ॥ किं एहिं रयणेहिं अप्पयरेहिंति तं रयणमंठि । अप्पिअ पभणह वणिअय! वत्तवं किंपि न खलु इमं ॥ ६४ ॥ इत्थंतरे नरेणं केणवि संकेइएण आगंतुं । कुसलेण आगओ तुह सुओत्ति वद्धाविआ गणिआ | ॥ ६५ ॥ ताहे कित्तिमहरिसं दरिसंती सह चऊहिं दासीहिं । सा नवह निअठवणीलाह पहिट्ठो स वणिओवि ॥ ६६ ॥ छस्सुवि नञ्चंतेसुं न विष्पोवि तीह तो पुट्टो । किं तुम नच्चसि स भणइ धुत्तो घट्ठोत्ति नचामि ||३७|| एवं वणिओ वेसापसाय परिलद्धसुद्धनिअरयणो । तीसे उचिअं दाउं पमुइअहिअओ गओ सहिं ॥ ६८ ॥ अह मित्तगहिअरयणं वणिओ मग्गेइ मित्तपासंमि । धुत्तो मितो जंपर मएप्पिअं तुह पिआहत्थे ।। ६९ ।। तो सो मग्गइ सक्खि तेणवि धुत्तेण दक्खविअ लोहं । सिक्खविअ कूडसक्खी आणीओ सच्चसक्खीव ॥ ७० ॥ तत्तो विसायवंतो तत्थ उवायं न किंपि पावतो । सह भज्जाए सह कूडसक्खिणा सह कुमितेणं ॥ ७९ ॥ अच्चासन्ने गामे बहुबुद्धिबलस्स नायकुसलस्स । नायगरस्स घरे सो गओ पलोएइ नायगरं ॥ ७२ ॥ जुअलं ॥
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