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श्राद्धप्रताहे कणेवि वुत्तं सो नायगरो गओ परं लोअं। तो झूरंतो तग्गिहमज्झे पिच्छेह तप्पुत्तं ॥७३॥ परिवे-12
१४गाथाति०सूत्रम् | |सिउण्हरव्वं निबंधेणंबपासि मग्गंतं । रोइअ घयं तओ सो बहु झुरिअ जाइ जा पच्छा ॥७४॥ युग्मम् ॥
यां अदत्तेता तेणं लहुएणं सो भणिओ तुज्झ भो किमिह कजं ? । स भणइ एयावत्थो कह काहिसि अम्ह गुरु कजं?
वसुदत्त॥ ७५ ॥ सो आह अम्ह गेहे न निरत्थं किंपि किजए कजं । अइउण्हा रब्बा इअ घयजायणओ विलंबेमि ॥७६॥15
कथा जइ दिन्नं तो लाहो न हि तो उप्पाडिऊण पाइस्सं । इअ तब्बालयबुद्धीचमक्किओ सो कहइ कजं ॥७७॥
५८-८६ | तेणवि बाहिं चउरो ठविआ इक्किक आहविअ मज्झे । तस्स रयणस्स माणं अल्लकणिकाइ कारविअं॥७८॥ तं दो वणिएहिं कयं सम्मं नय जाणएवि वणिभजा । बहुमुल्लंति महंतं करेइ पुण कूडसक्खी सो ॥७९॥ | कूडं पयडीकाउं तो अप्पावेइ तस्स तं रयणं । बालो अबालवुद्धी का वा सिद्धी न वुद्धीए ॥ ८॥इअ सुणिअ |सोमदेवोवि निउणगणिआण भणइ निअकजं । नायगराणपि तहा तेहिवि नह किंपि संसिद्धं ॥८१॥ तो सो चिंतइ नूणं गयाणि एयाणि मज्झ रयणाणि। ही मह अभग्गजोगो मग्गेविड निवडिआ धाडी॥ ८२॥ अहसो निरासभूओ परासुभूअप्पिअव पलवंतो । पत्तो रायवारे दिववसा राइणा दिहो ॥८३ ॥ को एसो किं विलवह निवेण सकिवेण सेवया एवं । पुट्ठा तेहिवि सिट्ठो जहडिओ सिडिवुत्तंतो ॥८४ ॥ आहविअ तओ रन्ना | SIMom पुट्ठो सिट्ठीवि कहिअ हिअदुक्खं । विन्नवह देव! सेवयजणस्स मह गइ अह तुमेव ॥ ८५ ॥ तो पत्थिवो पयंपइ।। सुत्था होऊण कहसु वीसत्थो । ताण रयणाण नामप्पमाणमुल्लाइअंसयलं ॥८६॥ तेणवि ताणं भणिअं जहत्थ
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