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________________ श्राद्धप्र- ति सूत्रम्भ ॥७४॥ ओ ताहे । लोहिस्सइ लोहगिहं दिओ कहं न बहुरयणेहिं ? ॥४४॥ सइ अइधणेवि धणि लोभभिभूआ||१४गाथा मंति भिक्खाए । जे माहणा परधणं न गहंति कह करगयं ते ?॥४५॥ एवं अवसट्टो समच्छरं वच्छरं व यां अदत्ते तं रथणिं । सो कहमवि अइवाहिअ अविहाए जाइ दिअगेहं ॥४६॥ जा मग्गइ निअठवणीं समाहणो। वसुदत्तताव वाहिविहुरुब । बहिरुब अन्नमन्नं विलवइ तो सो विणिहयासो ॥४७॥ दुस्सहदुहं वहंतो जणे कहंतो | कथा उवायमलहंतो। जिणभवणगओ केणवि भणिओ इन्भेण सकिवेणं ॥४८॥ युगलम् ॥ कयधुत्तमुत्तगुंफा|४ फुफागणिआ इहत्थि तुह कजं । सिज्झेइ तीइ इअसो सोउं तम्मंदिरं पत्तो ॥४९॥ आवजिअ तं गणिअंधणिअं| |धणदाणओ निअंकजं । साहेइ सावि साहइ लहु साहिस्सं अवस्समिमं ॥५०॥ अह सा उवरिं बहुविहचित्तविचित्ताओ दिन्न तालाओ। चत्तारि पेडिआओ कारिअ धारेइ गिहमज्झे ॥५१॥ अह सा धुत्ता पत्ता घरंमि | विप्पस्स तस्स एगते । विच्छायमुहा पभणइ मह तणओ एग एवासी ॥५२॥ सो गयपुवो जलनिहिजत्ताए। | जाणवत्तभंगणं । बडो मओ अ चउरो तब्भजाओ अपुत्ताओ॥५३॥ तासिं च पेडिआओ चउरो बहुरयणमाइभरिआओ। अन्नं च सुबहुदत्वं न याणिमो का गई इहि ? ॥५४॥ अम्हाण अणाहाण य तणयविहीणाण सवमवि दत्वं । ही गिहिस्सइ राया जा नाया तेण इअ सुद्धी ॥५५॥ तो जइ भणेह तुम्भे ता संपइ किंपि किंपि ||७४॥ निअवित्तं । चित्तं व तुम्ह पासे मुंचामो आणि गूढं ॥५६॥ इअ सोउं सो तीए भणिअंधणि हिअंमि गह-16 गहिओ । गहगहिओ इव जाओ परवसो दबल्लोभेणं ॥५७॥ भव्युव्व सुगुरुवयणं सद्दहमाणो तहत्ति तं सवं ।। Jain Educatio n For Private Personal Use Only rel 1 .jainelibrary.org
SR No.600129
Book TitleShraddh Pratikraman Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1919
Total Pages474
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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