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________________ जणवाए । वित्थरिए लजाए समन्निओ मन्निही नेव ॥३०॥ सुअणो नेव विरुद्धं कुणइ कुणइ तावहेइ अणुतावं MS जणवाए पुण जाए मरेइ नउ मन्नएवि तयं ॥ ३१॥ इअ चिंतिअ तग्गेहं गओ स जुत्तीइ जाच मग्गेइ । ताव वसुदत्तधुत्तो धरितु धीरत्तमुल्लवई ॥३२॥ काणि रयणाणि गहिलय! अधणी हअत्ति किंव पलवेसि । हा अहव सवाए सुत्तो गहगहिओ धाउखुहिओ वा ॥ ३३॥ यतः-"अपलपति रहसि दत्तं प्रत्ययदत्तेऽपि संशयं कुरुते । क्रयविक्रये च लुण्टति तथापि लोके वणिक साधुः॥ ३४ ॥” ताहे पडिहयवयणो स दीणवयणो सयं गओ भवणं । चिंताताविअहिअओ विविह उवाए पलोएइ ॥ ३५॥ सो पुच्छंतो धुत्ते धियं सुणंतो अणेगधुत्तक । निसुणइ केणवि कत्थवि पणिजंतं इमं वुत्तं ॥ ३६॥ वणिपुत्ता दो मित्ता अभूरिवित्ता वणिजउज्जुत्ता । एगे पिहपिहनीवीजुत्ता पत्ता परं देसं ॥३७॥ विढविअ दविणं किंचिवि एगो उकंठिओ | गिहं गंतुं । आपुच्छइ मित्तं तो बीओ निअरयणमप्पेइ ॥ ३८॥ पभणइ अ मज्झ भवणे निवाहत्थं महप्पिआहत्थे। अपिजऽणप्पमुलं इमं महामंततन्तं व ॥ ३९॥ तो आमित्ति भणित्ता गिणिहत्ता रयणमायरेण इमो। आपुच्छित्ता मित्तं चलिओ सगिहं गओ अ कमा ॥४०॥ लोहाइरेगओ तं न अप्पिअंतप्पिआइ अह बीओ। अजिअबहुविहरयणो हरिसिअवयणो कमा चलिओ ॥४१॥ निअपुर आसन्नपुरे पत्तो सायं भयं विभाशिवतो । तत्थेव रयणगंठिं ठवेइ थविरहविप्पगिहे ॥४२॥ आयाओ निअगेहं पुच्छइ हरिसिअहिअं निअं दइअं। रयणचडणं तओ नहि नहित्ति सुणिऊण स विसन्नो ॥४३॥ तक्केइ जइ वयंसोवि एगरयणेण लोहि Jain Educa t ional For Private & Personel Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600129
Book TitleShraddh Pratikraman Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1919
Total Pages474
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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