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श्राद्धप्र
ति० सूत्रम् ॥ ७३ ॥
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वराया झाय दइवं किमवि अन्नं ॥ १६ ॥ लाहाहिलासिणोऽविहु मूलखओ ही विवागु तण्हाए । तं तहवि | देवयंपिव वर्हति हिअए हहा अबुहा ॥ १७॥ अइकोहो अइलोहो अइदोहो अहमओ अ अइमोहो । दूरं परम्भवंमि अ इहेव हा हुंति दुहऊ ॥ १८ ॥ अह सो गयस्सो बहुसोगवसो विलुत्तचित्तरसो । केवल बाहुसहाओ | असहाओ आगओ सगिहं ॥ १९ ॥ तेणागयमित्तेण य मित्तो पुट्टो करंडिआकसलं । तो निअओ वृत्तंतो कहिओ दविणस्सऽहो ! मोहो ॥ २० ॥ इतो अ तस्स मित्तो चिंतह चित्तंनि इत्तिआसारो । रुप्पा असारस्सवि कहं णु तो किंपि पेहेमि ॥ २१ ॥ तो छोडि करंडिं निरूवयंतेण तेण लद्वाणि । अर्द्धगगउरिसंकरनयणाणि व पंच रयणाणि ॥ २२ ॥ अह तेण लोहखोहिअहिएण हणिडं विवेगवरनयणं । मुत्तूण मित्तमिलिं भित्तूण भयंपि भूवणो ॥ २३ ॥ मित्तदोहं इहभव परभवसंभाविदोससंदोहं । अविआरिअ आयइमवि पंचवि | गहिआणि रथणाणि ॥ २४ ॥ जुअलं ॥ इहभवपरभवनवनवदुहहेऊ चोरिआ असेसावि । सा पुण ठवणीओ महविसं व वग्घारिअं अहिअं ॥ २५ ॥ सप्पुव दप्पचडिओ अग्गी धग्गीकओह पवणेण । तंपि कुणति समिद्धा अवि धिद्धी धीद्वाणं ॥ २६ ॥ जुअलं ॥ अन्नदिणे सोमेणं मग्गिअ नीआ गिहं निआ |ठवणी । जा संभालइ सो ता न निहालइ पंच रयणाणि ॥ २७ ॥ तो सुन्नमणो खणमुच्छिअव उक्कीरिअव | लिहिअव । सत्ताहि अत्तयाए कयावहाणो विचिंते ॥ २८ ॥ मित्तोवि एगचित्तो कज्जविक कहमकज्ज - | मिअ कुजा | अहवा लोहसमुद्दे वुडति हु तरणनिउणावि ॥ २९ ॥ पच्छन्नमेव संपइ गंतुं मग्गेमि जेण
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१४ गाथा
यां अदत्ते
वसुदत्त
कथा
२-२९
॥ ७३ ॥
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