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________________ श्राद्धप्र- राया अहं जुत्तो, चक्की इव महिडिओ॥९५॥ असंबद्धमसंभवं, वयणं सुणिऊण तं । धुत्तं पइ पयंपेइ, चंपयहुम |१२गाथाति सूत्रम् देवया ॥९६ ॥रे धुत्त! धुत्तिआसेसदेस दुच्चरिएण तं। निव्वहंतो मुहा कीस, मूढ! भासेसि एरिसं॥९७॥ न यां सपाकिंचि पासे ते पासे, निल्लक्खण! सुलक्खणं। जेण एअंपि सिज्झेइ, सोवि जंपेइ देवयं ॥ ९८॥ सुमरिजा गिरी वादे कम॥६५॥ एअं, एअं सयदिणंतरे । कुजा नो जइ तो तुज्झ, पच्चक्खं पविसे चिअं॥ ९९ ॥ तओ तन्नगरद्दारवासिदेवीइ। लश्रेष्ठिकमंदिरे । सो कवड्डाइ मेलित्ता, जूअं खिल्लेइ कप्पिअं ॥ १०॥ लंबोदरखित्ताहिवजक्खजक्खिणिमाइओ। दारवासिणि देवि च, टंकलक्खि जिणेइ सो॥१॥ खंडीखंडकए अंके, मेलित्ता संहरितु तो सो लंबोदरं बेइ, ७८-१११ देहि मे लब्भयं धणं ॥२॥ तिकोणतिक्खपाहाणकोणग्याएण सिग्घयं । फोडिस्सं लंबमुदरं, लंबोदर ! तुहऽनहा |॥३॥ एवं भणित्तु सो जाव, महंतं पाहणं तयं । उप्पाडेइ स भीओ ता, देह दो लक्ख टंकए ॥४॥ एवं अन्नेवि ते सत्वे, वंतरा दिति लग्भयं । निस्सृगाणं नराणं हि, विंतरा अवि किंकरा ॥६॥ वित्तेण तेण तत्थेव, आवासाइ तहेव सो।कारेइ झत्ति किं नेह, कजं सिज्झेइ दवओ?॥६॥ सहस्सटंकसुलहभोगा तेण पणंगणा। अणंगसेणातोऽकणंगसेणा अंतेउरी कया॥७॥ विलसंतो समं तीए, तत्थतं तरुवंतरि । पुवुत्तंगविरोपावो, उच्चारेइ पुणो पुणो ॥८॥ तत्तो रुट्टा निकिट्ठा सा तं, धुत्तं धरि सिरे। आणि नयरे तस्स, सत्वं वृत्तं पयासए ॥९॥ विडंबिओ य णेगाहिं, पीडाहिं नारयं वसो। तंच उप्पाडिउंदरे, पक्खिवेइ भमाडिउं॥१०॥दुम्मारेण मओसोवि, निन्भगोदुग्गइंगओ। भवंमि भमिही पावफलं ही केरिसं फुडं॥११॥ता पुत्त!स महाधुत्तो, सबधुत्ताण अग्गिमो। एवं विगुत्तो तोहन्त!, Jain Educati o TOT nal For Private Personal Use Only A w.jainelibrary.org
SR No.600129
Book TitleShraddh Pratikraman Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1919
Total Pages474
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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