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________________ श्राद्धमति० सूत्रम् ॥ २७ ॥ Jain Education | ४ बीअरु इमेव ५ । अभिगम ६ वित्थाररुई ७ किरिआ ८ संखेव ९ धम्मरुई १० ॥ ४ ॥ भूअत्थेणाहिगया जीवाजीवा य पुन्नपावं च । सहसंमइआऽऽसवसंवरो अ रोएई निसग्गो ॥ ५ ॥" "भूअत्थ'त्ति सद्भूता अमीअर्था इति सद्भूतार्थत्वेन 'सहसंमइअ'न्ति सहसन्मत्या जातिस्मृतिप्रतिभादिरूपया, "जो जिणदिट्ठे भावे चउविहे सहाइ सयमेव । एमेव नन्नहन्ति अ स निसग्गरुइत्ति नायो || ६ ||" 'चउविहे 'त्ति क्रव्यादिभेदेर्नामादिभेदैर्वा, "एए चेव हु भावे उवहट्ठे जो परेण सद्दहइ । छउमत्थेण जिणेण व उबएसरुहत्ति नायवो ॥ ७ ॥ रागो दोसो मोहो अन्नाणं जस्स अवगयं होइ । आणाए रोयंतो सो खलु आणारुई नाम ॥ ८ ॥" 'आणाए 'ति | आज्ञयैवाचार्यादिसम्बन्धिन्या जीवादि प्रतिपद्यमानो माषतुषादिवत्, “जो सुत्तमहिज्जतो सुएण ओगाहह उ | सम्मन्तं । अंगेण बाहिरेण व सो सुत्तरुइत्ति णायवो ॥ ९ ॥" 'ओगाह 'त्ति प्राप्नोति सम्यक्त्वं रहस्यग्रहणार्थं कपटसंयती भूत शाक्य भक्तगोविन्दवाचकवत्, "एगेण अणेगाई पयाइ जो पसरइ उ सम्मतं । उदएव तिलबिंदू सो बीअरुइत्ति नायवो ॥१०॥" "एगेणत्ति जीवाद्येकपदेन रुचितेन जीवाजीवाद्यनेकपदेषु रुचिमान्, "सो | होइ अभिगमरुई सुअनाणं जेण अत्थओ दिहं । इक्कारसमंगाई पन्नगं दिट्टिवाओ अ ॥ ११॥" 'पन्न त्ति प्रकीर्णकानि-उत्तराध्ययनादीनि, “दवाण सवभावा सवपमाणेहिं जस्स उवलद्धा । सव्वाहि नयविहीहि अ वित्थार रुइत्ति नायो ॥ १२ ॥ दंसणनाणचरित्ते तवविणए सच्चसमिरगुती । जो किरिआभावरुई सो खलु किरिआरुई | नाम ॥ १३ ॥ अणभिग्गहिअकुदिट्ठी संखेवरुत्ति होइ नायो । अविसारओ पवयणे अणभिग्गहिओ असे For Private & Personal Use Only ६ गाथायां सम्यक्त्व स्वरूपं ॥ २७ ॥ jainelibrary.org
SR No.600129
Book TitleShraddh Pratikraman Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1919
Total Pages474
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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