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________________ बहुभिरन्यैश्चानुवर्तितस्तजीतमिति, अत्र गाथा:-" आगमसुयववहारो, मुणह जहा धीर पुरिसपन्नत्तो। पच्चक्खो य, परोक्खो सो वि अ दुविहो मुणेयवो ॥१॥ पच्चक्खो वि य दुविहो, इंदियजो चेव नो य इंदियो। इंदियपच्चक्खो वि य, पंचसु विसएम नेयव्वो ॥२॥ नोइंदियपच्चक्खो, ववहारो सो समासो तिविहो । ओहिमणपज्जवे या, केवलनाणे य पच्चक्खो ॥३॥ पञ्चक्खागमसरिसो, होइ परोक्खो वि आगमो जस्स । चंदमुहीव उ सो वि हु, आगमववहारवं होइ ॥४॥ परोक्खं ववहारं, आगमओ सुयहरा ववहरति । चोद्दसदसपुव्वधरा, नवपुब्बिग गंधहत्थी य ॥ ५॥ [एते गन्धहस्तिसमाः] "जं जह मोल्लं रयणं, तं जाणइ रयणवाणिओ निउणं । इय जाणइ पञ्चक्खी, जो सुज्झइ जेण दिनेणं ॥६॥ कप्पस्स य निज्जुत्ति, ववहारस्सेव परमनिउणस्स । जो अत्थो वियाणइ सो ववहारी अणुनाओ ॥७॥ तं चेव अणुसजंते, [अनुसरन् ] ववहारविहिं पउंजइ जहुत्तं । एसो सुश्रववहारो, पन्नत्तो वीयरागेहिं ॥ ८ ॥ अपरक्कमो तवस्सी, गंतुं जो सोहिकारगसमीवे । न चएई आगंतुं, सो सोहिकरो विदेसाओ ॥३॥ अह पट्टवेइ सीस, देसंतरगमणनढचेट्ठाओ । इच्छामज्जो काउं,सोहिं तुम्भं सगासंमि ॥ १० ॥ सो ववहारविहिन्नू , अणुसज्जित्ता सुअओवएसेणं । सीसस्स देह आणं तस्स इमं देह पच्छित्तं ॥ ११॥ 'गूढपदैरुपदिशतीति' । ३ । जेणऽ नयाइ दिट्ठ, सोहीकरणं परस्स कीरंतं । तारिसयं चेव पुणो, उप्पन्न कारणं तस्स ॥ १२ ॥ सो तंमि चेव दव्वे, खित्ते काले य कारणे पुरिसे । तारिसयं चेव पुणो, करितु आराहो होइ ।। १३ ॥ वेयावच्चकरो वा, सीसो वा देसहिंडओ वावि 'देसं अवधारतो, चउत्थरो होइ ववहारो ॥ १४ ॥त्ति' बहुसो बहुस्सुएहिं, जो वत्तो नो निवारिओ होइ । वत्तणुबत्तपमाणं, जीएणं कयं हवइ एयं ॥१५॥ तथा-जं जस्स उ पच्छित्तं, आयरियपरंपराए Jain Education Lana For Private & Personal Use Only लिwww.jainelibrary.org
SR No.600127
Book TitleVichar Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtivijay, Dansuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages416
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size21 MB
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