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________________ पुञ्छणं वा आर्छदइ वा विञ्छिदइ वाभिंदइ वा अवहरइ वा राजक्खाइडे खलु अयं पुरिसे तेण मे एस पुरिसे अक्कोसइ वातहेव जाव अवहरहवा राममं चणं तब्भववेयणिज्जे कम्मे उदिन्ने भवइ तेण मे एस पुरिसे अक्कोसइ वा जाव अवहरइ वाममंचणं सम्ममसहमाणस्स जाव अणहियासेमाणस्स किं मन्ने कजइ? एगंतसोमे पावे कम्मे कज्जइ४। ममंचणंसम्म सहमाणस्स जाव अहियासेमाणस्स किं मन्ने कज्जइ? एगंतसो मे निज्जरा कज्जइ ५। इचेतोहं पंचाह ठाणेहिं छउमत्थे उदिन्ने परीसहोवसग्गे सम्म सहजा जाव अहियासेज्जा ॥ पंचहिं ठाणेहिं केवली उदिन्ने परीसहोबसग्गे सम्मं सहेजा जाव अहियासेज्जा । तंजहा-खेत्तचित्ते खलु अयं पुरिसे तेण मे एस पुरिसे अक्कोसइ वा तहेव जाव अवहरइ वा १ दित्तचित्ते खलु अयं पुरिसे तेण मे एस पुरिसे जाव अवहरइ वा २ जक्खाइटे खलु अयं पुरिसे तेण मे एस पुरिसे जाव अवहरइ वा ३ ममं च णं तब्भववेयणिज्जे कम्मे उदिने भवइतेण मे एस पुरिसे जाव अवहरइ वा.४ ममं च णं सम्मं सहमाणे खममाणे तितिक्खमाणे अहियासेमाणे पासित्ता बहवे अन्ने छउमत्था समणा निग्गंथा उदिन्ने २ परीसहोवसग्गे एवं सम्मं सहित्संति जाव अहियासिस्संति ५ इच्चेतहिं पंचहिं ठाणेहिं केवली उदिन्ने परिसहे सम्मं सहेज्जा जाव अहियासेज्जा इति" । वृत्तिर्यथा-' पंचहीत्यादि' स्फुटं किंतु छाद्यते येन तच्छद्म-ज्ञानावरणादिधातिकर्मचतुष्टयं तत्र तिष्ठतीति छद्मस्थ:-सकषाय इत्यर्थः। उदीर्णान-उदितान् परीषहोपसर्गानभिहितस्वरूपान् सम्यकषायोदयनिरोधादिना सहेत भयाभावेनाविचलनाटवत्, क्षमेत क्षान्त्या, तितिक्षेत अदीनतया, अध्यासीत परीषहादाववाधिक्येनासीत न चलेदिति। Jain Educations For Private & Personal Use Only Eellww.iainelibrary.org
SR No.600127
Book TitleVichar Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtivijay, Dansuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages416
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size21 MB
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