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________________ विचार॥११०॥ Jain Education Intert परं बद्धमउडा न पव्वयंति, ताए अभएवं रजं दिजमाणं न इच्छति । सेणिओ चिंतेइ 'कोशियस्स दिजिहि ' ति लस्स हत्थी दिनो सेयगो हल्लस्स देवदिनो हारो अभए वि पव्वयतेां सुनंदा खोमजुअलं कुंडलजुअलं चहलविला दिन्नाणि | महया विहवेणं अभय नियजराणीसमेओ पन्चड्यो । सेणियस्स चल्लणादेवी अंगसमुन्भूया तिनिपुत्ता कुणिश्र हल्लविहल्ला य, कूणियस्स उप्पत्ती एत्येव भणिस्सर, काली महाकाली पमुहदेवी अन्नासि तणया सेणियस्स बहवे पुता कालपा संति । अभमि गहियन्वर अन्नया कोणि कालाइहिं दसहिं कुमारेहिं समं मंतेइ सेणियं सेच्छाविकारयं चित्ता एकारसभाए रज्जं करेमो त्ति । तेहिं पडिसुयं, सेखियो बद्धो पुव्वले अवरले य कससयं दवावेइ, सेणियस्स कूणि पुण्यभववेरियत्तणेण चेल्लाए कयाइ ढोयं न देइ भत्तं वारियं पाणियं न देह ताहे चेल्ला कहवि कुम्मासे वाले हिं बंधिता सयासुरं च पवेसेह सा किर धोन्बइ सयवारे सुरापाणियं सव्वं होइ तीए पहात्रेण से वेयणं न वेएइ । अन्नया तस्स उमादेवी पुतो एवं पिओ अस्थि । मायाए सो भणिति - दुरात्मन् ! तब अंगुली किमिए वमंती पिया मुद्दे काऊण अस्थिया इयरहा तुमं रोवंतो चैव चिट्ठेसु ताहे चित्तं मणागुवसतं जायं, मए पिया एवं वसणं पाविश्र तस्स अधि जाया भुंजं चैव उट्ठाय परसुहत्थो गयो अन्ने भखंति लोहदंडं गहाय 'नियलागि भंजामि ' ति पहाविश्र रक्खवालगो नेहेण भइ - एसो सो पात्रो लोहदंडं परसुं वा गहाय एड् त्ति सेणिएवं चिंतिथं न नज्जइ के कुमरणेण मारेही, तो तालपुडगं विसं खइयं जाब एड् ताव मओ सुहुयरं अधिई जाया, ताहे मयकिञ्चं काऊण घरमागओ रज्जधुरामुकत तीम्रो तं चैव चिंततो अच्छ एवं काले विसोगो जाओ, पुणरवि सणसणाईए पिइसंतिए दट्टू अधिई होइ, तो For Private & Personal Use Only रत्नाकरः ॥११०॥ www.jainelibrary.org
SR No.600127
Book TitleVichar Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtivijay, Dansuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages416
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size21 MB
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