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मजणघराउ पडिनिक्खमइ पडिनिक्खमित्ता जेणेच जिणघरे तेणेव उवागच्छद्द उवागच्छित्ता जिणघरं अणुपविसइ अणुपविसित्ता जिणपडिमाणं आलोए पणामं करेइ करित्ता लोमहत्थयं परामुसइ परामुसित्ता जिणपडिमाओ पमज्जइ पमाजित्ता सुरहिणा गंधोदएण न्हाएइ सुरभीए गंधकासाईए गत्ताई लूहेइ लूहित्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं अंगाई. अणुलिंपइ अणुलिपित्ता सरसेहिं गंधेहि य मल्लेहि य अचेइ एवं जहा रायपसेणिए सूरिया। जिणपडिमाओ अच्चेइ अच्चइत्ता तहेवजाणियब्वं जाव धूवं डहइ डहित्ता वामं जाणुं अंचेइ अंचेइत्ता दाहिणं जाणुं धरणितलंसि निहट्ट तिक्खुत्तो मुद्धाणं धरणितलंसि निवेसेतिर तिक्खुत्तो मुद्धाणं इसि पच्चुन्नमइ पच्चुनमित्ता करयल जाव कट्ट एवं वयासी-नमोत्थु णं | अरहताणं भगवंताणं जाव संपताणं बंदइ नमसइ२ जिणघराओ पडिनिक्खमइ पडिनिक्खमित्ता जेणेव अंतउरे तेणेव उवा- 1 गच्छइ इति । वृत्तिर्यथा-'जिणपडिमाणं अञ्चणं करेइ 'त्ति एकस्यां वाचनायामेतावदेव दृश्यते । वाचनान्तरे तु
"न्हाया जाव सव्वालङ्कारविभूसिया मजणधरानो पडिनिक्खमइ२ जेणामेव जिणघरे तेणामेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता N| जिणघरं अणपविसइ अणुपविसित्ता जिणपडिमाणं आलोए पणामं करेइ लोम हत्थयं परामुसइ परामसित्ता, एवं जहा सूार- |
याभो जिणपडिमाअो अच्चेइ, तहेव भाणियव्वं जाव धृवं डहइ" त्ति इह यावत्करणादर्थत इदं दृश्यम्-लोमहस्तकन जिनप्र. तिमाः प्रमार्टि सुरभिणा गन्धोदकेन स्नपयति, गोशीर्षचन्दनेनानुलिम्पति वस्त्राणि निवासयति, ततः पुष्पाणां माल्यानां ग्रथितानामित्यर्थः, गन्धानां चूर्णानां वखाणां आभर्णानां चारोपणं करोति स्म, मालाकलापावलंबनं पुष्पप्रकर तन्दुलदपणाद्यष्टमङ्गलकालेखनं च करोति, 'वामं जाणुं अञ्चइ 'त्ति उत्क्षिपतीत्यर्थः, 'दाहिणं जाणुं धरणितलंसि निहट्टु' निहत्य
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