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________________ विचार रत्नाकर ॥ ५८॥ इति भगवत्यष्टादशशतकाष्टमोद्देशके ८०६ प्रतौ ४६६ पत्रे ॥१५॥ अन्यत्र तु आमलकप्रमाणं पृथ्वीकायपिण्डश्चक्रिचन्दनपेषिकापिष्टोऽचित्तो न भवतीति श्रूयते । अत्र तु जतुगोलकप्रमाण इति भेदान्तरजिज्ञासया पृथिव्याक्रमणे तज्जीवानां कीदृशी वेदना भवतीत्यर्थजिज्ञासया च सूत्रद्वयं लिख्यते "पुढवीकाइयस्स णं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा परमत्ता ? गोयमा ! से जहा नामए रमा चाउरंतचक्कबट्टिस्स वनगपोसया तरुणी बलवं जुगवं जुवाणी अप्पायंका वनो जाव निउणसिप्पोवगया नवरं चम्मेद्वदुहणमुट्ठियसमायणिचियगत्तकाया न भन्नइ सेसं तं चेव जाव निउणसिप्पोवगया तिक्खाए वइरामईए सण्हकरणीए तिक्खेणं वइरामएण वट्टावरएणं एगं महं पुढविकाइयं जतुगोल गसमाणं गहाय पडिसाहरिय पडिसाहरिय पडिसंखिविय पडिसंखिविय जाव इणामेव त्ति कट्ट तिसत्तखुत्तो उप्पीसेजा, तत्थ णं गोयमा ! अत्थेगइया पुढवीकाइया आलिद्धा अत्थेगइया नो प्रालिद्धा, अत्थेगइया संघट्टिया अत्थेगइया नो संघट्टिया, अत्थेगइया परियाविया अत्थेगइया नो परियाविया, अत्थेगइया उद्दविया अत्थेगइया नो उद्दविया, अत्थेगइया पिट्ठा अत्थेगइया नो पिट्ठा, पुढविकाइयस्स णं गोयमा! ए महालिया सरीरोगाहणा पमत्ता । पुढविकाइयस्स णं भंते ! अकते समाणे केरिसयं वेदणं पञ्चणुब्भवमाणे विहरइ ? गोयमा ! से जहानामए केइ पुरिसे तरुणे बलवं जाव निउणसिप्पोवगए एगं पुरिसे जुम्मं जराजजरियदेहं जावदुब्बलं किलंतं जमलपाणणा मुद्धाणंसि अभिहणेजा से णं गोयमा ! पुरिसे तेणं पुरिसेणं जमलपाणिणा मुद्धाणंसि अभिहए समाणे केरिसयं वेदणं पच्चणुब्भवमाणे विहरइ ? अणि टुं समणाउसो तस्स णं गोयमा! पुरिसस्स वेदणाहिंतो पुढविकाइए अकंते समाणे एत्तो Jain Educat i onal For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600127
Book TitleVichar Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtivijay, Dansuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages416
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size21 MB
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