________________
रत्नाकर
विचार
॥५२
समाणे आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे धणुं परामुसइ परामुसित्ता उसुं परामुसइ उसुं परामुसित्ता ठाणं ठाइ ठिच्चा आयतकमायतं उसे करेइ करेत्ता वरुणं णागणत्तुयं गाढप्पहारी करेइ । तते णं से वरुणे णागणत्तुए तेणं पुरिसेणं गाढप्पहारीकए समाणे आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे धणुं परामुसइ परामुसित्ता उसु परामुसइ उसुं परामुसित्ता आयतकनायतं उसुं करेइ करेत्ता तं पुरिसं एगाहचं कूडाहचं जीवियाओ ववरोवेइ । तते णं से वरुणे णागणत्तुए तेणं पुरिसेणं गाढप्पहारीकए समाणे अत्थामे अबले अवीरिए अपुरिसकारपरकमे अधारिणजमिति कट्ट, तुरए णिगिएहइ णिगिरिहत्ता रहं परायत्तेइ रहं परावत्तित्ता रहमुसलाओ संगामाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता एगतमतं अवक्कमइ अवक्कमित्ता तुरए णिगिएहइ निगिण्हइत्ता रहे ठावइ ठावेत्ता रहाम्रो पच्चोरुहइ पञ्चोरुहित्ता रहाओ तुरए मोएइ मोएत्ता तुरए पडिविसजेइ पडिविसओत्ता दब्भसंथारगं संथरइ संथरित्ता दम्भसंथारगं दुरूहइ दुरूहित्ता पुरत्थाभिमुहे संपलियंकनिसन्ने करयलपरिग्गहियं जाव कट्ट एवं वदासीनमोत्थु णं अरहताणं जाव णमोत्थु णं समणस्स भगवो महावीरस्स आइगरस्स जाव संपाविउकामस्स मम धम्मायरियस्स धम्मोवदेसगस्स वदामि णं भगवंतं तत्थ गतं इह गते जाव बंदति णमंसति वंदित्ता नमंसित्ता एवं वदासी-पुष्विपि णं मए समणस्स भगवो महावीरस्स अंतियं थूलए पाणातिवाए पञ्चक्खाते जावजीवाए, एवं जाब धूलए परिग्गहे पञ्चक्खाए जावजीवाए, इयाणि पि य णं अहं तस्सेव भगवो महावीरस्स अंतियं सव्वं पाणाइवायं पञ्चक्खामि जावजीवाए, एवं जहा खंदो जाव एवं पि य णं चरिमेहिं असासनीसासेहिं वोसिरिस्सामि तिकट्ठ संमाहपढें मुयइ मुइत्ता सलुद्धरणं करेइ करेत्ता आलोइयपडिकंते समाहिपत्ते आणुपुव्वीए कालगते । तए णं तस्स वरुणस्स णागणत्यस्स एगे पियवाल-
॥५२॥
Jain Education int
o nal
For Private & Personel Use Only
MPlwww.jainelibrary.org