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________________ घ. प्र. ४ Jain Education 215 ५ माराहियं ६ चेव एरिसयंमि पयइयां ॥ ८ ॥ उचिए काले विहिणा पत्तं जं फासियं तयं भणियं । तह पालियं च असई सम्मं वओगपडियरियं ॥ ९ ॥ गुरुदत्तसेसभोयणसेवणाए य सोहियं जाण । पुण्णेवि थेवकालावत्थाणा तीरियं होई ॥ १० ॥ भोयणकाले अमुगं पञ्चवक्खायंति सरइ किट्टिअयं । आराहियं पयारेहिं सम्ममे एहिं पडियरियं ॥ ११ ॥ द्वारं ६ । साम्प्रतं फलं - तच्च सामान्यतो यथा - " पच्चक्खाणस्स फलं इहपरलोगे य होइ दुविहं तु । इहलोगे धम्मिलाइ दामन्नकमाइ परलोए ॥ १२ ॥ धम्मिल्लदृष्टान्तो वसुदेवहिण्डितो ज्ञेयः । दामन्नकस्यात्र पडावश्यकवृत्तितो ( पृष्ठं ७९ ) ज्ञेयः । तस्य विशेषफलं यथा - " पच्चक्खाणंमि कए आसवदाराई हुंति पिहिताई । आसववुच्छेएणं तण्हावुच्छेयणं होइ ॥ १३ ॥ तण्हाबुच्छेएणं अउलोवसमो भवे मणुस्साणं । अउलोवसमेण पुणो पच्चक्खाणं हवइ सुद्धं ॥ १४ ॥ ततो चरित्तधम्मो कम्मविवेगो अपुत्रकरणं तु । तत्तो केवलनाणं तओ अ सोक्खो सयामोक्खो ॥ १५ ॥ एवं वन्दनकविधिः । साम्प्रतं प्रतिक्रमणविधिः तत्र दैवसिकादिप्रतिक्रमणविधिगाथाः, तत्रेदं दैवसिकं - " जिणमुणिवंदणअइआरुस्सग्गो पुत्ति वंदणालोए । सुत्तं दणखामण वंदण तिन्नेव उस्सग्गा ॥ १ ॥ चरणे दंसण नाणे उज्जोआ दुन्नि इक्क इक्को अ । सुअदेवयादुस्सग्गा, पुत्ती वंदणय (ति) थुइ थुत्तं ॥ २ ॥ अथ रात्रिकं - “ इरिआ कुसुमिणुसग्गो जिणमुणिवंदण तहेव सज्झाओ । सबस्सवि सक्कथओ तिन्नि अ उस्सग्ग कायद्या ॥ १ ॥ चरणे दंसण नाणे दुसु लोगुज्जोअ तइय अइयारा । पुत्ती वंदण आलोअ सुत्त तह बंद खामणयं ॥ २ ॥ वंदण For Private & Personal Use Only *******FRR ainelibrary.org
SR No.600124
Book TitleVandan Pratikramanavchuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchanvijay, Kshemankarsagar
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1952
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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