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________________ | अवचुरि श्री भगवती सूत्र 'अस्थिति किरियवाई, वयंति नत्यित्तिऽकिरियवाइओ । अन्नाणिय अन्नाणं वेणइया विणयवायंति ॥१॥ ॥ इति त्रिंशचमं 'समोसरणतयं' परिसमाप्तम् ॥ ॥ अथेकत्रिंशतमं 'उववायसयं :'खुड्डा जुम्म नेरइया कओ उववज्जति ? यदुक्तम्-चत्तारि वा अट्ठ वा बारस वा, एवं आद्या नारकाः कुत उत्पद्यन्ते ! यो हि जुम्मो य महंतो य सो महंतजुम्मो, जो पुण खुड्डो चेव जुम्मो सो खुडाजुम्मो जहा चत्तारि अट्ठ बारस वा एवमादि । एव तेजोगादयो विभावणिया । ॥ इत्येकत्रिंशत्तमं 'उपवायसयं' परिसमाप्तम् ॥ ॥ एवं द्वात्रिंशचम-उवट्टणासयं॥ यस्त्रिंशचम–एकेन्द्रियशतं ग्रन्थे एव सुज्ञानम् ॥ अथ चतुस्त्रिंशत्तम सेढिसयं :'सेढियसय' लोकनाडि प्रस्तीर्य भावनीयं गाथाश्चानुसर्तव्याः| "वृत्ते चउसमयाओ, नथि गई उ परा विणिद्दिठ्ठा । जुज्जइय पंच समया, जोवस्स इमा गई लोए ।१॥ ॥१९९॥ Jan Education in For Private Personal Use Only
SR No.600115
Book TitleBhagvatisutra Avachuri
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1974
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size11 MB
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