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________________ श्री भगवती सूत्र अवचूरिः "सब्वे विणं भते भवसिद्धिया जीवा सिन्झिसंति" इत्यादि सूत्रम्-ये सेत्स्यन्ति ते भव्या नाऽमव्या:, न च भव्यविरहितो लोकः । यथाऽऽकाशश्रेणि सर्वमेवाकाशं प्रतरीकृत्यं चतुरसं अपहारः क्रियते न च तिष्ठति एतदाफैमात्रमनुच्छेदप्रकरणद्वारेण भावनीयमाभिर्गाथाभिश्व "तो भण्णइ किन सिझंति, अहव किमभव्बसावसेसत्ता । निल्लेवणं न जुज्जइ, तेसि तो कारणं अयं ॥१॥ भन्नइ तेसिममब्वेवि, पइ अनिल्लेवणं न उ विशेषो । न उ सब्वमन्वसिद्धि, सिद्धा सिद्धंतसिद्धीओ ॥२॥ किह पुण मन्नबहुत्ता, सव्वागासपएसदिढता। नवि सिज्झिहिंति तो भणइ किं नु भश्चत्तणं तेसिं १ ॥३॥ जह होउ णं भव्यावि, केइ सिद्धिं न चैव गच्छंति । एवं तेवि अभव्वा, को व विसेसो मवे तेसिं ॥४॥ मण्णइ भव्यो जोग्गो, दारु च दलियंति वावि पज्जाया। जोगो वि पुण न सिज्झइ, कोई रुक्खाइ दिदंता । ५॥ पडिमाईणं जोगा, बहवो गोसोसचंदणदुमाई । संति अजोगा वि इह, अन्ने एरंडभेंडाई ॥६॥ ण य पुण पडिमुप्पायण, संपत्ती होड़ सब्ब जोगाणं । जेसि पि असंपत्ती, न य तेसि अजोग्गया होइ ।७।। किं पुण जा संपत्ती, सा नियमा होइ जोग्गरुक्खाणं । न य होइ अजोग्गाणं, एमेव य भव्वसिज्झणया ॥८॥ सिज्झिस्संति य भन्या, सम्वेवित्ति भणियं च जं पहुणा । तंपि एपाएच्चिय, दिट्ठीए जयंति पुच्छाए । ९१ अहवा पडुच्च कालं, न सव्वमव्वाण होइ योच्छित्ति । तीवणागयाओ, अद्धायो दोवि तुल्लाओ ॥१०॥ ॥१२५॥ Jain Education Interno For Private & Personel Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600115
Book TitleBhagvatisutra Avachuri
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1974
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size11 MB
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