________________
श्रीगुणचंद महावीरच ३ प्रस्तावः
संभूतिसरेरुपदेशः
॥३७॥
चरणकमलं उवविवो सन्निहियभूमिभागे, गुरुणावि पारद्वा महुमहणापरियपंचयण्णरवाणुकारिणा सरेण धम्मदे सणा। जहा
संसाररुंदरंगे सइलूसेहिं व चित्तरूवेहिं । सो नत्थि किर पएसो जीवहिं न नच्चियं जत्थ ॥१॥ चउगइजलपडलाउलभवण्णवेऽणेगसो करेंतेहिं । दुहिएहिं मजणुम्मजणाई कुम्मेहि व कहिंपि ॥२॥ आरियखेत्तुप्पत्ती नो पाविजइ पभूयकालेऽवि । तीएवि हु पत्ताए कहिंचि कम्मक्खओवसमा ॥३॥ धम्मत्थकामसाहणकारणमेगंतियं न मणुयत्तं । पावंति पावविहया भममाणा विविहजोणीसु ॥४॥ लद्धेऽवि तत्थ जरकाससासकंडूपमोक्खदुक्खेहिं । निहयाण धम्मकम्मुज्जमोऽवि दूरेण वचेजा ॥ ५ ॥ नीरोगत्ते पत्तेऽवि रुद्ददारिदविहुयसरीरा । उदरभरणत्थवाउलचित्ता वोलिंति नियजीवं ॥६॥ इस्सरिएऽविहु बहुदविणवद्धणारद्धविविहवावारा। लोभेण भोयणंपिहु काउंन तरंति वेलाए ॥७॥ संतोसेणवि मिच्छत्तपंकपसरेण मइलमइविभवा । सवण्णुमयं सम्मं सुयंति नेवाववुझंति ॥ ८॥ सव्यण्णुधम्मवोहे जाएऽवि हु कम्मपरिणइवसेणं । नीसेसगुणावासो गुरूवि न कहिंपि संपडइ ॥९॥ लद्धेऽवि गुरुमि समत्थवत्थुवित्थारपयडणपईवे । सिद्धिपुरपरमपयवी न पयट्टइ तहवि विरइमई ॥ १० ॥ तीएवि तिक्खबहुदुक्खलक्खनिरवक्खकारणं पायो । पसरंतो न पमाओ खलिउं तीरेइ वणकरिव ॥११॥
॥३७॥
For Private Personal Use Only
in Education
mainelibrary.org