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________________ श्रीगुणचंद || णत्थं तणपूलयपडलं पजालिउमारद्धा, सो य मच्छो तेण परितत्तसरीरो झडत्ति निबुड्डो अच्छाहे जले, एवं हारियं द्वितीयेऽणुमहावीरच० दूजाणवत्तं बलदेवेण, परितुट्ठा निजामगा, पत्ता य कमेण नियनगरं, तो तेहिं पडिरुद्धं जाणवतं, समुत्तारिऊण तीरे|| व्रते सत्य ८प्रस्ताव श्रेष्ठिकथा. मुको बलदेवो, पारद्धो अणेण झगडओ निजामगेहिं समं, जहा असच्चा इमे मच्छहारिणो चिलाया मए विजियत्ति || ॥२९९॥ काऊण आडंबरमुवदंसंतित्ति भणिऊण बला चेव भंडमुत्तारिउमारद्धो, निजामगेहिं वाहिया नरवइणो आणा, न ठाइ बलदेवो, तओ रायाणं उवट्ठिया दोवि पक्खा, तेर्सि च परोप्परं विवदंताणं परमत्थमवियाणिऊण भणियं रत्नाअरे! एत्थ ववहारे को सक्खी?, निजामगेहिं भणियं-देव! अस्थि चेव सक्खी, परं नियसहोयरसुवेक्खिऊण किं अम्हाणं सक्खित्तणं करिस्सइ १, राइणा भणियं-को पुण सो?, तेहिं भणियं-सचसेट्ठी, एवं वुत्ते एगंते ठाऊण पुच्छिओ सो रन्ना कजपरमत्थं, ताहे स सच्चसेट्ठी परिभावइ किं करेमि एव ठिए ? । जइ अवितहं न जंपेमि होइ ता मे वयकलंको ॥१॥ जइ पुण जहेव वित्तं तहेव साहेमि ता लहू भाया। पावइ अणथमत्थो जाई हीरइ पसिद्धीवि ॥२॥ ता दोन्निवि गरुयाई आवडियाइं इमाई कज्जाई । एकंपि परिच्चइउं न तरामि करेमि किं इण्हिं ? ॥ ३॥ अहवा इहलोयकए कहं च चिरकालपालियं नियमं । गुरुमूले पडिवन्नं जाणंतोऽहं विराहेमि? ॥४॥ किं एत्तो अइपावं जं जाणंतावि भवअसारत्तं । पडिसिद्धसुवि अत्थेसु मोहओ संपयति ॥५॥ ॥२९९॥ Jain Education For Private Personel Use Only Senelibrary.org
SR No.600114
Book TitleMahavir Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandra
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages704
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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