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________________ | अहरप्पहाएँ निहरइ विहुमकंकेल्लिपल्लवसिरीवि । रूवेऽणुरंजिएण व रंभाए वहइ समसीसिं ॥५॥ किं बहुणा?-एवंविहवरजुवईजणस्स विरहे विडंबणा कामा । मणुयत्तंपिहु विहलं दुहावहं भूवइत्तंपि ॥६॥ 13 तं कहसु कस्स एसा सुयणू! को वा इमीए लाभंमि । कीरंतो य उवाओ अणुरूवो सिद्धिमावहइ ? ॥७॥ SN एवं नराहिवेण भणिए चित्तगरेण जंपियं-देव! न हवइ एसा सुराईण रमणी, किंतु सयाणियरन्नो अग्गमहिसी है मिगावइनाम, मए सामन्नण आलिहिया, विसेसओ जइ पुण परं पयावई से रूवमालिहउ, जइ एवं नाम महिला चेव सा अओ रे वजजंघ! वय सिग्धं, गंतूण भणसु मम वयणेण सयाणियनरवई, जह सिग्धं पेसेसु मिगावई, एवं-12 |विह इत्थीरयणाण वरणे को तुज्झ अहिगारोत्ति ?, ता सिग्धं पेसेसु, जुझसजो वा होजासित्ति बुत्ते जं देवो 31 आणवेइत्ति भणिऊण गओ दूओ, निवेइयं सयाणियस्स नरिंदसासणं, तेण य तमायन्निऊण जायकोवेण भणिय-18 रे याहम! जइ कहवि सो कुलकमविमुक्कमजायं उस्सिंखलं पयंपइ ता तुज्झवि किं खमं वोत्तुं ?, किं भिचो सोऽवि न जो ससामिणो उप्पहं पवत्तस्स नियबुद्धिवित्थरेणं अवजसपंसुं परिसमेइ ?, एवंविहदुनयवियारिणोऽवि महा० JP जायइ कुले गुरुकलंको, किं पुण बहुजणपुरओ पयडगिरा पभणिजंते?, अन्नेसुवि रजंतरेसु दिढे सुयं व रे तुमे एवंविहं | अकजं कीरंतं केणइ निवेण, किंच-जत्थ सयं चिय राया दुन्नयमेवंविहं समायरइ ततो हया मूलाओ वराइणी RECARRANGACA%AGRASARALA Join Education a l For Private Personal Use Only I apelibrary.org
SR No.600114
Book TitleMahavir Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandra
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages704
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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