SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 529
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तुलंमिवि संबंधे समेऽवि कालाइयंमि एगस्स । संपंजइ बहुलाभो मूलंपि पणस्सइ परस्स ॥ २७ ॥ इय एवंविहकज्जाण कारणं कम्ममेव नायवं । निक्कारणाई जायंति जेण न विचित्तकजाई ॥२८॥ एवं वुत्ते निच्छिन्नसंसओ पंचसिस्ससयसहिओ। भववरग्गमुवगओ पडिवजह सोऽवि पवजं ॥ २९ ॥२॥ अह वाउभूइनामो सहोयरो तेसिमेव लहुययरो। पम्मुक्कमच्छरो भत्तिनिब्भरुभिन्नरोमंचो ॥३०॥ कह तेऽवि तेण विजियत्ति विम्हयं परममुत्वहंतो य । एइ जिणसन्निगासं संसयवोच्छेयमिच्छंतो ॥ ३१ ॥ अह सो जएकगुरुणा पयंपिओ भद्द ! कीस वहसि तुमं । तज्जीवं तस्सरीरंति संसयं जुत्तिपडिसिद्धं १ ॥ ३२ ॥ जेण सरीरजियाणं एगंतेगत्तकप्पणे जीवो । नो होज देहनासे घडभंगे तस्सरूवं व ॥ ३३ ॥ देहे य विजमाणे जीएण विवजिएवि जाएजा। चित्ताईया धम्मा न य ते तधिरहओ दिट्ठा ॥ ३४ ॥ तम्हा भिन्नाभिन्नो विन्नाणघणो सरीरओ जीवो । अन्नोचिय मुणियबो एवं भणियंमि पडिबुद्धो ॥ ३५॥ पंचहि सिस्ससएहिं सहिओ सोऽवि हु जिणस्स पासंमि । निच्छिन्नपेमबंधो मुंचइ घरवासवासंगं ॥ ३६ ॥३॥ अह इमे तिन्निवि गहियपवजे निसामिऊण दुरुम्मुक्कमच्छरो गच्छामि संसयं च पुच्छामि न सामन्नरूवो सो भयवंति बहुमाणमुघहंतो वियत्तो नाम अज्झावगो गओ जिणसमीवं, वागरिओ य भयवया, जहा-भह ! वियत्त! तुह पंचभूयसत्ताविसओ संसओ, सो य न जुत्तो, जओ पचक्खदिस्समाणा(भू)जलणजलानिलाइणो भूया कहं अवलविउँ Jain Educ a tional For Private 3 Personal Use Only W w.jainelibrary.org
SR No.600114
Book TitleMahavir Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandra
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages704
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy