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श्रीगुणचंद महावीरच. ८प्रस्ताव
श्रीमतो गातमस्य अग्निभूतेश्व प्रतिबोधः
॥२५४॥
इय जयगुरुणो वयणं सोउं परिभाविउं च मइपुवं । मिच्छत्तेण समं चिय उज्झइ तं संसयं झत्ति ॥ १५॥ अह ववगयकविगप्पो दप्पं सप्पं व उज्झिउं दूरे। संसारविरत्तमणो निवडइ चलणेसु जगगुरुणो ॥ १६ ॥ भणइ य भयवं! नियदिक्खदाणओ मज्झऽणुग्गहं कुणसुइय वुत्ते नियहत्येण दिक्खिओ एस जयगुरुणा ॥१६॥१॥ तं पवइयं सोउं अग्गिभूईवि चिंतई एवं । वचामि तमाणेमी पराजिणेऊण सवण्णुं ॥१७॥ मण्णे छलाइणच्चिय छलिओ माइंदजालिएणं व । समणेण तेण तम्हा उवेक्खणिज्जो न सो होइ ॥ १८॥ संसयमेगंपि ममं जइ पुण छिंदेज होमि ता सिस्सो । तस्सत्ति जपमाणो सोवि गओ जिणवरसमीवं ॥१९॥ हे अग्गिभूइ ! कम्म अत्थी नत्थित्ति संसओ तुज्झ । बाढमजुत्तो एसो विजइ कम्ममिह पयर्ड ॥२०॥ कहमण्णहा समेऽवि हु करसिरपमुहंगदेहसंबंधे । एक्के भवंति सुहिणो अण्णे पुण दुक्खिया निचं ॥ २१ ॥ धारियधवलायवत्ता विलासिणीविहुयचामरा एगे। भडचडगरपरियरिया वचंति करेणुगारूढा ॥ २२॥ अण्णेऽणुवाहण चिय पए पए भयवसेण कंपंता । एगागिणो वरागा कहकहवि पहंमि गच्छंति ॥ २३॥ एगे लीलाए चिय पूरेंति मणोरहे बहुजणाणं । नियउयरंपिऽवि अन्ने भरंति भिक्खाए भमणेण ॥ २४ ॥ ससहरमुहीहिं बिंबाहरीहिं पप्फुल्लकुवलयच्छीहिं । एगे विलसंति विलासिणीहिं सद्धिं सभवणेसु ॥ २५ ॥ मक्कडमुहीहि मिरियत्थणीहिं अइलंबमोट्टपोटाहिं । पचक्खरक्खसीहिं व अन्ने गिहिणीहिं सह ठंति ॥ २६ ॥
॥२५४॥
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