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________________ KAKAR CAKC दुवालसमो वासारत्तो, अह चाउम्मासखमणपडिवनस्स सामिणो माणिभद्दपुन्नभहनामाणो वाणमंतरसुरिंदा भत्तिभरमुव्वहंता रयणीए समागंतुण चत्तारिवि मासे जाव पूयं करेंति, ते य दट्टण विम्हियमणो साइदत्तमाहणो विचिंतेइ-किं एस देवजगो जाणइ किंपि? जं देवा एयमणवरयं पूयंति पजुवासिंति य, तओ परिक्खानिमित्तं । जंपियमणेणभयवं! एत्थ सरीरे करसिरपमुहंगसंगए अप्पा । को भण्णइत्ति ? तत्तो भवोत्ति जिणेण से कहियं ॥१॥ जो अहमेवं मन्नइ, केरिसओ सो? अईव सुहुमोत्ति । सुहुमंपि किं भणिजइ ?, इंदियगेझं न जं होइ ॥२॥ एत्तो चिय सद्दानिलगंधाईया, लहंति न कयाइ । अत्तववएसमेए, जं गेज्झा गाहगो अप्पा ॥ ३ ॥ इय एवमाइपसिणप्पवंचपरमत्थवित्थरे कहिए । विप्पो उवसंतमणो जयगुरुणो कुणइ बहुमाणं ॥४॥ अह पजंतमुवगए वासारत्ते जिणेसरो वीरो । कम्ममहिमहणसीरो जंभियगामंमि संपत्तो ॥५॥ तत्थ सुरिंदो वंदित्तु सायरं दंसिऊण नट्टविहिं । कइवयवासरमज्झे नाणुप्पत्तिं परिकहेइ ॥६॥ तत्तो मिंढियगामे पुबुवयारं सरित्तु चमरिंदो । नमिऊण चलणजुयलं जहागयं पडिनियत्तोत्ति ॥७॥ इय अणवरयसुरविसरथुणिज्जमाणचरणो दुस्सहपरीसहमहोयहिदरतीरपत्तो आणुपुबीए परिभममाणो संपत्तो | छम्मासिगामं, ठिओ य तस्स बाहिभागंमि असेससत्तोवरोहरहियंमि पलंबियभुओ काउस्सग्गेणं । एत्यंतरे तिवि A LCREAKER Jain Educat i onal For Private Personal Use Only jainelibrary.org
SR No.600114
Book TitleMahavir Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandra
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages704
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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