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________________ श्रीगुणचंद महादुक्खेण अभिभूया, सोगाउरा जाया, राया य तं पएसमणुपत्तो पुच्छइ-देवी ! किं विमणदुम्मणा लक्खिज्जसि ?,15 अमात्यामहावीरच० तीए भणियं-देव! किं परिकहेमि?, तुम्हे दुग्गदुग्गइगमणमूलेण इमिणा रजभरेण पच्छाइयविवेया एत्तियंपिन दिचिन्ता ७प्रस्ताव मणह, जहा कत्थ सामी विहरह?, कहं वा भिक्खं परिभमइत्ति, बहुं निब्भच्छिऊण साहिओ अभिग्गहवइयरो. अभिग्रहो द्घोषणा. ॥२४२॥ राणा भणियं-देवि! वीसत्था होहि, कल्ले सवपयारेहिं जाणामि परमत्थंति भणिऊण उवविट्रो अत्थाणमंडवंमि. वाहराविओ सुगुत्तामचो, समागओ एसो, तओ पणमिऊण राइणो पायपीढं उवविद्रो जहोचियासणे, भणिओ राइणा-अहो अमच ! किं जुत्तमेयं तुज्झ जं भयवंतं इह विहरमाणंपि न जाणसि ?, अहो ते पमत्तया अहो ते सद्धम्मपरंमुहया, अज किर सामिस्स चउत्थो मासो निरसणस्स अविनायाभिग्गहविसेसस्स वदृइत्ति, सुगुत्तेण 2 भणियं-देव! अवरावरक जंतराऊरियघरवासवासंगित्तणेण न किंपि मुणिय, इयाणिं पुण जं देवो आणवेइ तं संपा-15 डेमित्ति भणिए रन्ना सहाविओ तच्चावाई धम्मसत्थपाढगो, पुच्छिओ य एसो-जहा भद! तुह धम्मसत्थेसु सबपासंडाणं आयारा निरूविजंति, ता साहेहि को भगवया अभिग्गहविसेसो पडिवन्नोत्ति?, तुमंपि अमच ! बुद्धि 18॥२४२॥ बलिओ, अओ वीमसेसु को एत्थ उवाओ ?, खणंतरं च वीमंसिऊण तेहिं भणियं-देव! बहवे दबखेत्तकालभावभे-II यभिन्ना अभिग्गहविसेसा सत्त पिंडेसणाओ सत्त य पाणेसणाओ हवंति, अओ न नजइ कोऽवि अभिप्पाओत्ति । प्रतिओ रना सबत्य नयरीए काराविया उग्घोसणा, जहा-भयवओ भिक्खं भर्मतस्स अणेगप्पगारेहि भिक्खा नीणि-I SOCROCOMOUSNESAMEERS RECAANAACARR Jain Educatode tonal For Private & Personal Use Only Ninjainelibrary.org
SR No.600114
Book TitleMahavir Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandra
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages704
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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