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________________ CLASSUMER इय एत्थेव भवंमिवि विसिट्ठभत्तीऍ पत्तदाणेणं । पाविजइ धणरिद्धी समुद्धरा किं पुणऽण्णभवे? ॥१॥ एत्तोचिय रुंदोविहु भवन्नवो गोपयं व लीलाए । दुक्करतवविरहेणवि लंघिजइ पुन्नवंतेहिं ॥२॥ लब्भइ तिलोयलच्छी लब्भइ सबंपि कामियं सोक्खं । एकं चिय नवि लब्भइ सुपत्तदाणं जयपहाणं ॥३॥ नाणंपि तवोवि हवेज निप्फलं कहवि दिवजोएणं । दिन्नं सुपत्तदाणं वभिचरइ न नूण कइयावि ॥४॥ इय जाणिऊण कल्लाणकोसकलणेकपचले दाणे । न करेजा नणु जत्तं को अत्तसुहं समीहंतो ? ॥ ५॥ अह जयगुरू तत्थ पारिएण बहिया विहरिउमारद्धो । अन्नया य गामाणुगामेण गओ बहुमेच्छजणसंकुलाए । दढभूमीए, तत्थ य पेढालाभिहाणस्स गामस्स बहिया पेढालुजाणे पोलासचेइए अट्ठमेणं तवोकम्मेणं अपाणएणं ईसिं ओणयकाओ अचित्तलुक्खपोग्गलनिवेसियानिमेसनयणो गुत्तसविंदियगामो सुप्पनिहियगत्तो अहोपलंबिय भुयदंडो सुसिलिट्ठसंठवियनिचलचलणो दुरणुचरं कायरनरुधोसकरं एगराइयं महापडिममारभेइ । एत्थंतरे दूसोहम्माए सभाए नाणामणिरयणभासुरकिरणपजलंतमहंतसिंहासणसुहासीणो अणेगसुरसुरंगणाकोडाकोडिसंवुडो किरीडाइवराभरणपहाविच्छुरियदेहो पुरंदरो तहा पडिमापडिवन्नं जयनाहमोहिए पलोइऊण तक्खणविमुक्कासणो अचंतभत्तिभरनिन्भरंगो पुणरुत्तनिडालताडियमहीवट्ठो पणमिऊण आणंदसंदोहसंदिरीए सन्भूयत्वगुणगणुब्भासणसमत्थाए परमपवखवायसुंदराए गिराए सुचिरं संथुणिऊण य निस्सामन्नं सामिणो असामन्नगुणपब्भारं हि-18 JainEducatination For Private 3 Personal Use Only H arjainelibrary.org
SR No.600114
Book TitleMahavir Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandra
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages704
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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