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________________ श्रीगुणचंद महावीरच. ६ प्रस्ताव मातुःसंगमागोवत्सोल्लापः ॥२२॥ गावी वागरइ तओ पुत्तय! मा वहसु अद्धिई किंपि । अइधम्मववहारा बाहिरो वट्टए एसो ॥३॥ वच्छेण भणियमम्मे ! कहमेवं ?, पुत्त! कित्तियं कहिमो? । नियजणणीएवि समं जो वासं बंछह अणजो ॥४॥ ता वच्छ! सहसु सच तं धन्नो एत्तिएण जे मुक्को । उज्झियनियमज्जाया किमकज जन कुवति? ॥५॥ तावचिय तत्तरुई तावच्चिय धम्मकम्मपडिबंधो । लोयाववायभीरुत्तणं च तावेव विप्फुरइ ॥ ६॥ तावजवि न विणस्सइ लजा जणणी गुणाण सयलाणं। अह सावि कहवि नट्ठाता नट्ठा कुसलचेट्टावि॥७॥ जुम्म। इय सुरहिं साभिप्पायवयणसंदोहमुल्लवेमाणिं वच्छस्स पुरो दटुं सो सहसा संकिओ हियए, चिंतिउमारद्धो यअहो पढमं ताव इमंपि महअच्छरियं जं तिरिच्छजोणिया होऊण माणुसियाए भासाए संलवइ, तत्थवि नियमायाभिगमलक्खणं दूसणं मे दंसेइ, कहमेवं संभवइ ?, कत्थ मम माया? कत्थ अहं? कहं संवासो, सवं अचंतमघडंत| मेयं, अहवा होयबमेत्थ कारणेणं, चित्तरूवाई विहिणो विलसियाई, संभवइ सवं, अओ पुच्छिस्सामि तं चेव साविलयं उट्ठाणवडियंतिभाविऊण गओ तीसे घरं, अन्भुडिओ अणाए दावियं आसणं पक्खालिया चरणा ठियाई खणंतरं अवरोप्परुल्लावेण, अह पत्थावमुवलब्भ पुच्छिया सा अणेण-भद्दे ! साहेसु कत्थ तुम्ह उप्पत्ती?, तीए सहासं भणियं-जत्थ एत्तियजणस्स, तेण भणियं-अलाहि परिहासेण, अहं सकजं पुच्छामि, तीए भणियं-मुद्धो|ऽसि तुमं, जेण २२०॥ Jain Educati o nal For Private & Personel Use Only M ainelibrary.org
SR No.600114
Book TitleMahavir Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandra
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages704
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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