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________________ RS S CRECCARSECREGAOG जइ रे वइयरमेयं सुणइ सुरिंदो कहंपि ता नूणं । तुम्हे सरजरहे किणासगेहंमि पेसेइ ॥९॥ इय भणिए भयभीया भयवंतं ते णमंति विणयनया। खामेंति सच्चरियं निडालतलघडियकरकमला ॥१०॥ अह तेहिं परिमुक्को भयवं वेसालिनयरिमणुसरि। चलिओ गच्छंतस्स य जाया विचे दुवे मग्गा ॥११॥ अह लाढाइसु देसेसु विविहतियोवसग्गवग्गणं । पडिभग्गो गोसालो सामि विनविउमाढत्तो ॥१२॥ एक पेच्छंतोऽविहु हणिजमाणं ममं न रक्खेसि । अन्नं तुहोवसग्गेण एइ मज्झपि उवसग्गो ॥ १३ ॥ अवरं पढमं लोगो में चेव हणइ पच्छओ तुम्हे । भोयणवित्तीवि महाकिलेसओ पइदिणं होइ ॥ १४ ॥ माणावमाणसमचित्तवित्तिणो सुण्णसेवणपरस्स । नायगधम्मोऽपि न तुज्झ कोऽवि पेच्छिजइ समीवे ॥१५॥ जेण-जो सेवगंमिसुहिए नो सुहिओ दुक्खिए य नो दुहिओ।सोक्खाभिकंखिणा नणु सेविजइ सोऽवि किं सामी?॥१६॥13 तम्हा अजवि चिरजीवियस्थिणो सोक्खकंखिरमणस्स। एत्तो तह सेवाए देवजय! मज्झ पजत्तं ॥ १७॥ । इय कहिए सिद्धत्थो वागरइ करेसु जं तुहावडइ । अम्हाण एरिसचिय ववहरणा किमिह तुह भणिमो? ॥१८॥ एवं जाए परोप्परुलावे सामी वेसालीमग्गेण लग्गो. इयरोऽवि भगवओ निघट्टिऊण रायगिहमग्गेण पढिओ, अंतरा य करिहरिहरिणविरुयवग्धपमुहसत्तसंकुले गयणतलावलंबिदीहरतरुभीसणे निवडिओ महारणे, तत्थ य31 चोरवइणा एगंमि महातरुसिहरे पहियजणावलोयणनिमित्तं आरोहिओ नियपुरिसो, तेण य दिट्ठो सो सच्छ Jain Educa t ional For Private & Personel Use Only dr.jainelibrary.org
SR No.600114
Book TitleMahavir Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandra
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages704
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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