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________________ चित्तफलगहत्थो सहाइणा एगेण अगुगम्ममाणो नयरपुरखेडकब्बडमडंबपमुहेसु सन्निवेसेसु आसापिसायनडिओ निष्विस्सामं परिब्भमइ। दंसेइ पइगिह चिय समूसियं तं च तियचउक्केसु । चउमुहमहापहेसु य पवासभादेउलेसुंपि ॥१॥ ताहे रहंगमिहुणं तहासरूवं निरूविऊण जणो। कोऊहलेण पुच्छइ साहेइ य सो जहावित्तं ॥२॥ अणवरयंपि सवित्थरमसमत्थो नियकहं च सो कहिउं । संखेवत्थनिबद्धं साहइ दुवईए नियवत्तं ॥३॥ जहा-माणससरोवरंमि अवरोप्परपोढपेमाणुरंजियं, नयणनिमेसमेत्तविरहदूमिजंतदेहयं । लुद्धयमुक्कनिसियसरविहुरियमह पंचत्तमुवगयं, संपइ संपओगमभिवंछइ एयं चक्कमिहुणयं ॥४॥ इमं च निसामिऊण केई पहसंति कई अवहीरंति केइ अणुकंपति, सोऽवि अविलक्खचित्तो सकजपसाहणेकनिरओ परियडतो चंपं नार गओ, तत्थ |य निट्ठियं पुवाणियं संबलं, तओ अन्नं जीवणोवायमपेच्छंतो तं चेव चित्तफलगं पासंडं ओडिऊण गायणाई गाय माणो भिक्खं भमिउं पवत्तो, अविय| अइतिक्खछुहाभिहयस्स पिययमाजोगऊयमणस्स । एकाविय से किरिया उभयत्थपसाहिया जाया ॥१॥ इओ य-तत्थेव पुरे वत्थबो मंखली नाम गिहवई, सुभद्दा य से भज्जा, सो य अपरिहत्थो वाणिजकलासु अकुसलो नरिंदसेवाए असमत्थो करिसणसमए अलसो कट्टकिरियाए अवियक्खणो वावारंतरेसु, केवलं भोयणमेत्तपडिबद्धो कहं सुहेण निबाहो होजत्ति अणवरयं उवायंतरं विचिंतंतो पेच्छइ मंखं चित्तपतृपयडणपडियकणभिक्खा Jain Educati o nal For Private & Personel Use Only ainelibrary.org
SR No.600114
Book TitleMahavir Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandra
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages704
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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