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________________ श्रीगुणचंद महावीरच ० ५ प्रस्तावः ॥ १६७ ॥ Jain Educatio तथा - तं चिय महप्पभावं रक्खावलयं इमो य सो समओ । तेणेकेणेव विणा सुन्नं सर्व्वं दिसापडलं ॥ २ ॥ अहवा रक्खावलएवि होज निष्पुन्नयस्स किं मज्झ ? | चिंतामणिलाभेऽविहु सीयइ विमुहो विही जस्स ॥ ३ ॥ आधारवसेण धुवं गुणोदया न उण जहा तहा होंति । सलिलंपि सिप्पिसपुडपडियं मुत्ताहलं होइ ॥ ४ ॥ इय एवं भाविंतो तमेक्कचित्तेण सो निराणंदो । जालंधरमणुपत्तो कमेण अविलंबियगईए ॥ ५ ॥ तवासिजणं च पुच्छितो पविट्टो चंदकंताए गिहे, सुन्नप्पायं च तं दहूण भणिया दुवारट्टिया गेहरक्खिया, जहा - भद्दे ! किमेत्थ कोऽवि न दीसइ, तीएवि बहिरत्तणेण वयणमसुणमाणीए दंसिया नियसवणा, तेणावि बहिरित्ति नाऊण जंपियं महया सहेण, एत्थंतरे सभीवगिहट्टिएण ईसाणचंदविजासिद्धेण सुणिओ सो सहो, पञ्चभिन्नाओ य तओ भणिओ सो-गोभद्द ! इओ इओ एहि, इहाहं निवसामि, गोभद्दोऽवि ससंभ्रमं वयणमेयं निसामिऊण कहं विजासिद्धो इव मं बाहरइत्ति जायसंको जाव कित्तियंपि भूभागमइक्कमइ ताव समक्खं चिय दिट्ठो अणेगनाडीनिविडजडियसरीरो चरणपसारणपि काउमसमत्थो ईसाणचंदो विज्जासिद्धो, तं च दट्ठूण चिंतियमणेण tional किं किंपि कूडमेयं बिभीसिया वा मइन्भमो किं वा । दिट्ठीए मोहणं वा होजा छलणप्पगारो वा ? ॥ १ ॥ अहवा पीढमिमं जोगिणीण सबंपि संभवइ एत्थ । नृणं सकम्मपवणप्पणामिओ जामि निहणमहं ॥ २ ॥ सुरसरियातीरे जड़ तइया काऊण धम्मकिचाई । परलोयं साहितोऽम्हि ता धुवं लट्ठयं होंतं ॥ ३॥ For Private & Personal Use Only गोभद्रय जालन्धरे गमनं ॥ १६७ ॥ ainelibrary.org
SR No.600114
Book TitleMahavir Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandra
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages704
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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