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________________ नियबुद्धिविणयविविहोवयारओ जेण सयलगामजणो । विहिओ पहिहियओ एग लच्छि विमोत्तूणं ॥१॥ | अहवा न सो कोऽवि गुणो जो तस्स न विजए दियवरस्स । तं नत्थि किंतु जं अँजिएहिं दिवसं स बोलेइ ॥२॥15 | एवं च धणविरहेवि सो अविचलचित्तत्तणेण मणागपि दीणत्तमदंसिंतो नियनियपरिग्गहत्तणेण चेव संतोसमुच तो चिंतेइ-अहो महाणुभावा! इमे धणिणो जे इमीए सिरीए परिग्गहिया पीडिजंति दाइएहिं विलुप्पिजंति नराहिवहिं अभिभविजंति तक्करनियरेहिं मग्गिजति मग्गणगणेहिं अणुहवंति विविहावयाओ, पयमेतंपिन परिभमंति सच्छंदयाए, तुच्छऽपत्थभोइणोवि अभिलसिजंति वाहीए, अहं पुण एत्तो एगस्सवि अणत्थस्स न गोयरमुवगओत्ति, एवं तस्स परिभावितस्स वचंति वासरा । अन्नया य सो सिवभद्दाभिहाणाए निययपणइणीए भणिओ, जहा-अजउत्त! आवन्नसत्ता वहामि अहमियाणिं, पसवसमए विससेण मह ओसहाइणा कजं भविस्सइ, तो कीस तुमं न किंपि पुरिसयारमवलंबेसि ? न वा दबोवजणोवायं विगप्पेसि ?, न हि अणागयत्थचिंतापरंमुहा सलहि-| जंति पुरिसत्ति, सो एवमायन्निऊण तक्खणविसुमरियपुत्वविवेओ जलहिच मेहोदएणं कुवियप्पकलोलमालाउलो परिभाविउमारद्धो-किं एत्तो ववसायं करेमि ? कं वा जणं अणुसरामि ? को वा इमस्स कजस्स होज साहेजदायगो? कत्थ व गयस्स एयं सिज्झेज ? को इमस्स हेउत्ति, इय किंकायवयवाउलत्तजलहिमि सो बुड्डो, ताहे सिवभहाए । हमणिओ सो-कीस वाउलो होसि ?, केत्तियमत्तं एवं तुह विमलकलाकलावस्स?, जइ कमविहु धणवंतं गतुं मग्गेसि Jain Educati o nal For Private & Personel Use Only Dainelibrary.org
SR No.600114
Book TitleMahavir Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandra
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages704
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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