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________________ श्रीगुणचंद महावीरच ० ५ प्रस्तावः ॥ १६० ॥ Jain Education सोऽवि ध्रुवमेयं कजं पसाहइस्सर, दुलहो तुम्हारिसो अतिही, गोभद्देण भणियं-पिए ! साहेसु परपत्थणं मोत्तूण अन्नसुवायं, पत्थणा हि नाम नरस्स जणेइ मरणसमय निविसेसत्तणं, तहाहि - जायणापयट्टस्स सन्निवायाभिभूयव पक्खलइ वाणी विगलंति विच्छायछायाओ अच्छीओ विगयसोहं हवइ वयणकमलं कंपंति अंगाई पयति दीहदीहा उसासा संखुभइ हिययंति । अविय - तावच्चिय कुमुयमयंक निम्मला विष्फुरंति गुणनिवहा । जाव परपत्थणाकलुसपंकलेवं न पावेंति ॥ १ ॥ तावच्चिय पूइजर गुरुत्तबुद्धीए परमभत्तीए । जावऽत्थित्तं सत्तत्तणं व पयडेइ न पुरिसो ॥ २ ॥ तावच्चिय मुहियणत्तणाई दंसंति निच्छियं लोया । देहित्ति दुट्ठमक्खरजुयलं जा नेव जंपेइ ॥ ३ ॥ देहित्ति जंपिरेण माणविमुक्केण विणयहीणेणं । धम्मत्थवज्जिएण य जाएणवि को गुणो तेण ? ॥ ४ ॥ अन्नवार्यतरमहुणा मम दुक्करंपि किंपि पिए! | साहेसु पत्थपि मरमाणोवि हु न काहामि ॥ ५ ॥ इय सा तन्निच्छियमुवलब्भ खणमेगं चिंतिऊण भणिउमारद्धा- अजउत्त ! जइ एवं ता अस्थि अन्नो उवाओ, परं बहुसरीरायास सज्जो अचिरकालसाहणिजो य, जइ भणह ता निवेएमि, गोभद्देण भणियं-पिए ! को दोसो ?, निवेएहि, तीए भणियं - पुणेसु, अस्थि पुचदेसे असंखदेवलमाला लंकिया वाणारसी नाम नयरी, तीसे समीवे फुरंतफा - रभंगुरतरंगाविद्धवियुद्धसलिला हंस चक्कवायमिहुणोब सोहिया अणवरयवहंतमहासलिलप्पवाहपूरियरयणागरा गंगा नाम For Private & Personal Use Only अर्थार्जनाय गोभद्रस्य प्रवास. ॥ १६० ॥ nelibrary.org
SR No.600114
Book TitleMahavir Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandra
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages704
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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