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तापसोपालम्भ,
श्रीगुणचंद
अम्ह गिहे तुम्हेहिं कोऽविहु मुक्को उ जो इमो समणो । सो अचंतं नियकज्जकरणपडिवद्धवावारो ॥१॥ महावीरच० एयंपि नो वियाणइ गोरूवेहिं जहागिहं एयं । पइदिणमुवद्दविजइ रक्खइ न खणंतरं एगं ॥२॥ ५प्रस्ताव: किं आलस्सं अहवाऽणुकंपणं अहव होज व उवेहा । निद्दक्षिण्णत्तं वा न याणिमो तस्सऽभिप्पायं ॥३॥ ॥१४७॥
अहवा मुणित्ति गोरूववारणं नो करेति स महप्पा । गुरुदेवपूयणपरा अम्हे समणा न किं होमो? ॥४॥ हे कुलवइ ! जइ रुटोसि अम्ह तं उडवयं हणिजंतं । एएणावि पओगेण वंछसे ता लहुं कहसु ॥ ५॥ जेण विमुंचामो तस्स संकहं को मए सह विरोहो? । रुट्ठोवि तोसणिज्जो जो किर को तेण सह माणो? ॥६॥ तुह चित्तवित्तिमवियाणिऊण णूणं मुहा को रोसो। तस्सोवरि अम्हेहिं का वा मूढाण होइ मई ? ॥७॥ इय ईसाभरसम्मिस्सकोवदरफुरियअहरमुलविउं । दूइजंतगमुणिणो कुलवइपासाउ निक्खंता ॥ ८॥
ते य तहा गच्छमाणे दट्टण कुलवई सवायरेण वाहराविऊण भणिउमाढत्तो, जहा-भो महाणुभावा! किमेवं परिकप्पह ?, को मज्झ दोसो ?, मए ययंससिद्धत्थरायपुत्तोत्ति कलिऊण एयस्स मुणिणो गउरवं कयं, किं मए एवं [वियाणियं? जं एसो एवं नियगेहमुवेहिस्सइ, एवं ठिएवि तहा करिस्सं जहा न विणस्सइ तुम्ह आसमो, ए
मा बहिस्सह संतावं, मा चिंतिजह कुविगप्पजालं, तुम्हाणं अवरो को मम पिओत्ति?, एवमायन्निऊण जायसंतातोसा गया ते जहागयंति, कुलवईवि गओ जिणसगासे, दिट्रो उडवओ निलुत्तपुंखपुडविडओब नाममेत्तावसेसो,
॥१४७॥
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