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________________ श्रीगुणचंद महावीरच ० ५ प्रस्तावः ॥ १४५ ॥ Jain Education 1 अह परसामत्थेचि जइ कम्मक्खउ घडेज ता विहलो । सिरलोयबंभचेराइ विविहतवचरणवावारो ॥ ३ ॥ असं किलि चित्तत्तणेण दढवद्धरसविवागाणं । सयमणुभवणं मोत्तुं कम्माण ण णिज्जरणमत्थि ॥ ४ ॥ गोहिम एस जिओ सहइ कम्मवसवत्ती । अवयास्वयारकरा तस्सेव पभावओ हुंति ॥ ५ ॥ ता जे पुवं सिद्धा जे सिज्झिस्संति जे य सिज्झति । ते नियवीरियकम्मक्खपण अन्नोऽत्थि नोवाओ ॥ ६ ॥ एवं विविहम होवसग्गयग्गं वियाणिउं पुधिं । पडिवन्नोऽहं संजममेत्तों का तेसु मन गणणा ? ॥ ७ ॥ इय सुरनाहं विविहोवउत्तिजुत्तीहिं बोहिउं भयवं । काउस्सग्गंमि ठिओ नूणं मियभासिणो गरुया ॥ ८ ॥ एत्थ य पत्थावे भयवओ चेव जणणिभगिणीए पुतो कयतहाविहघोरवालतय विसेस सामत्थोवलद्धवंतरसुरभवो सिद्धत्थो नाम देवो समागओ तं पएसं, सो य भणिओ सुरिंदेण जहा - भो सिद्धत्थय ! एस भयवं तुह आसन्नसयणोत्ति एगं कारणं, वीयं पुण समाएसो, ता सहा पासट्ठिओ सामिस्स मारणंतियमुवसग्गं पडिक्खलेज्जासित्ति, सोऽवि | एयमायन्निऊण देविंदसं भासणजायपरमतोसो तहत्ति पडिसुणइ, पुरंदरोऽवि सट्टाणं गओ । अह जायंमि पभायसमए भयवं चलिओ तओ ठाणाओ, कमेण य पत्तो कोल्लागसंनिवेसे, तत्थ य बहुलो नाम माहणो परिवसर, तस्स य गिहे महूसको समारद्धो, निप्फाइया रसबई, जेमेइ सयलजणो, एत्थंतरे भयवं मुणियभिक्खासमओ अतुरियं असंभंतो छपारणगे पविट्ठो भिक्खानिमित्तं गाममज्झे, उच्चनीयगिहेसु य परिभमंतो संपत्तो बहुलस्स मंदिरं, दिट्ठो For Private & Personal Use Only गोपसर्गनिवारणं इन्द्र विज्ञप्तिः • ॥ १४५ ॥ melibrary.org
SR No.600114
Book TitleMahavir Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandra
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages704
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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